Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain
View full book text
________________
ज्योतिषसारः ।
वज्जोयं नव घडियं, वाघाय नव घडिय परिमाणं ॥ ५० ॥ सूलोइ सत्त घडियं, गंडो अतिगंज छप घडियाइ' । पंचेवर विक्खभं सव्वे कज्जे विवज्जे हिं ॥ ५१ ॥
भावार्थ- वैधृति और व्यतिपात पूर्ण वर्जनीय हैं, परीघ पहिलेसे आधा, वज्र और व्याघात की पहिलेसे नव नव घड़ी, शूल योग की सात घड़ी, गंड और अतिगंड की छ छ घड़ी, और विष्कंभ की पांच घड़ी, ये सब शुभकार्य में वर्जनीय हैं ॥५० ५१ ॥ होडा चक्रम् —
१८
चुचेचोला अस्सणी, लीलूलेलो भरणि बीय freवायं । आईऊए कित्तिग, ओवावीवू रोहिणी चउरो ॥ ५२ ॥ aatent मिसिर, कूघङछ अद्दाइ छट्ठ रिसियायं ।
कोहाही पुणन्वसु, हुहेहोडा य पुषखायं ॥ ५३ ॥ डोडूडेडो असलेला, मामीमूमे मघ दसम संयुक्तं । मोटटीटू पूव्वफग्गुणी, टेटोपापीय उत्तराफग्गुणी ॥ ५४ ॥ पूसणठ हत्थ तेरम, पेपोरारी चित्त चवदमं भणियं रूरेता सायं, तीतूते तो विसाहा यं ॥ ५५ ॥ नानीनूने अनुराहा, नोयायीयू जिट्ठ दसम अड उचरिं । येयोभाभी मूलं, भूधाफढा पुव्वसाढा ये ।। ५७ ॥
भोजाजी उलाढा, जूजेजोखा अभीय बावीस' । सीखूखेखो सवणं, गागीगूगे धणिट्ठा यं ॥ ५७ ॥ गोसासी सियभिस, सेसोदादी पूण्त्रभद्द लहियं ।

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98