Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 80
________________ ६४ ज्योतिषसारः 1 wwwwwAAAA. यमदंष्ट्रायोग अणुराहाए बीया, उत्तर तीया मघाइ पंचमिया । कर मूला सत्तमिया, अट्ठमि संयुत्त रोहिणिया ||२१६ || तेरस चित्ता साई, एए यमदाढजोग दुहदाई | उत्तम कच्छू न काइ, कीरइ नहु जई करइ माई ॥२१७|| भावार्थ-द्वितीया को अनुराधा, तृतीया को तीनों उत्तरा, पञ्चमी को मघा, सप्तमी को हस्त और मूल, अष्टमी १ को रोहिणी, त्रयोदशी को चित्रा और स्वाति हो तो यमदाढ्योग र होते हैं वह दुःखदायी हैं इसमें उत्तम कार्य कुछ भी करना नहीं, यदि करतो मरण होता है ।। २१६।२१७ || चरयोग- सूरे हि पुठवसाढा, चंदा अद्दाइ भूवि साहाइ । बुद्धो रोहिणी सुक्क, मघा सनि मूला हवइ चरयोगा ॥२१८॥ भावार्थ - रविवार को पूर्वाषाढा, सोमवार को आर्द्रार्श, मंगल वार को विशाखा, बुधवार को रोहिणी, शुक्रवार को मघा और शनिवार को मूल नक्षत्र हो तो, चरयोग होते हैं I आरम्भ सिद्धि में "रविवार को उत्तराषाढा और गुरुवार को शतभिषा " इतना विशेष कहा है ॥२१८॥ 1 नोट- १नारचन्द्र टीप्पन में 'षष्ठी की रोहिणी' लिखा हैं २ उसको 'थमकतरी योग' भी कहते हैं ।

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