Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 49
________________ हिन्दी भाषा- टीका समेतः 1 ३३ पूर्वास्त में १५ दिन वृद्ध रहता है। संमुख शुक्र हो तो गमन नहीं करना, गर्भिणी या बालकवाली स्त्री, नव परणीत स्त्री और राजा आदि गमन करे तो इन्होंका सुख शीघ्र ही नाश हो जाता है -गर्भि णी का गर्भस्त्राव, बालकवालीका बालकके साथ मुत्यु, नवोढा स्त्री वंध्या हो जाय और राजा शीघ्र ही दुःख पावे। एक ही गाम नगरमें या अपना (राना) मकान में, विवाहमें दुर्भिक्षमें, राज्य विप्लव में, राजा की मुलाकात में और तोर्थयात्रा करनेमें, इन छ कारणोंमें शुक का विचार नहीं किया जाता है। अथ शुक्रास्त फल — चैत्रमास में शुक्र अस्त हो तो सर्व सुखकारक, ज्येष्ठ में आणंदकारी, आषाढमें अच्छी वर्षा, पौष और माघ मास में बहुत शीत, भाद्रपद और वैशाखमें पशुको पीडा, कार्त्तिक और फाल्गुनमासमें विग्रह, मार्गशीर्ष में देशभंग, आश्विनमें परराज्य से दुःख और श्रावणमें अनाज संस्ता हो । - रेवती आदि तीन नक्षत्र में चन्द्रमा हो तब शुक्र बांयी या दक्षिण आंखसेकांना जानना और कृत्तिका का प्रथम पादमें चन्द्रमा हो तब शुक्र अंधा जानना, यह दोष नहीं करता है, आरम्भ सिद्धि में कहा है कि- "अश्विन्या वह्निगदान्तं यात्रञ्चरति चन्द्रमाः । तदा शुक्रो भवेन्धः, संमुखं गमनं शुभम् ॥" इत्यादि ॥ सिवचक राहुचक, पुट्ठी दाहिणो व सिद्धि कारिये । सुको जोगिणी थं, पुट्ठि वामोइ फलदाई ॥ ११३ ॥ भावार्थ- शिवचक और राहुचक पृष्ठ या दक्षिण तरफ हो वो सिद्धि कारक है, शुक्र और योगिनी पृष्ठ या बांये तरफ हो !

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