Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 72
________________ ५६ ज्योतिषसार । और तृतीया, बुधवारको प्रतिपदा और तृतीया, सोमवार को सप्तमी और त्रयोदशी, रविवारको सप्तमी, मंगलवारको चतुदेशी और शनिवारको पंचमी हो तो संवर्त्तक योग होते है इसमें विवाह आदि नहीं करना और मंगलिक कार्य समय में इनका तो अवश्य ही त्याग करना ॥ १६० ।। १६१ ॥ शूलयोग ससि सूलं भू गंडं, अतिगंज बुद्ध भिगु वाघाई | वज्ज गुरु सनि वैधिति, भाण विषखंभो सूलाई ॥ १६२ ॥ भावार्थ -- सोमवार को शूल, मङ्गलवारको गंड, बुधवार को अतिगण्ड, शुक्रवारको व्याघात, गुरुवारको वज्र, शनिवार को वैधृति और रविवारको विष्कम्भ योग हो तो शूल योग होते हैं ॥ १६२॥ i शत्रुयोग बुध अद्दा भिगु रोहिणी, पुक्ख सिली सितभिसा य सनिवारा । गुरु विसाहा विज्जिय, सत्तूजोगइ सव्वाई ॥ १६३ ॥ वारको भावार्थ- बुधवारको आर्द्रा, शुक्रवारको रोहिणी, सोमपुष्य, शनिवारको शतभिषा, गुरुवारको विशाखा, “रविवारको भरणी और मङ्गलवारको उत्तराषाढ़ा” ये शत्रु योग है. ।। भस्म और दंडयोग भाणाइ गिण . हु दिण, रिसि सत्तम भसमाइ तहर पनरमयं । दण्डयोगो हि ईयं, मासं मोइ इंगवारं ॥ १६४ ॥ भावार्थ- सूर्य नक्षत्र से चन्द्रनक्षत्र सातवां हो तो भस्म

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