Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 94
________________ ज्योतिषसारः। भूमेह वयण रोग, नयणे सुह होइ मत्थए रज्जं। कर कठे रोग धणु हिय, गुज्झे परभोग गमण पए । २६० ।। भावार्थ-भौम चक्र सर्व कार्यमें देखना चाहिये; भौम नक्षत्र से जातकके जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारीके अङ्ग विभागमें- ३ मुख पर, ३ नेत्र पर, ३ मस्तक पर, ४हाथ पर, २ कंठ पर, ५ हृदय पर, ३ गुह्य पर, और ४ पांव पर, इस अनुक्रम से स्थापित कर फल कहना- भौम मुख पर हो तो रोग, नेत्र पर हो तो सुख, मस्तक पर हो तो राज्य, हाथ और कंठ पर हो तो रोग, हृदय पर हो तो धन, गुह्य स्थान पर हो तो परस्त्री लंपट और पांव पर हो तो देशाटन हो ॥ २६५ से २६७ ॥ बुधवास चक्र बुहचक सवइ कज्जे, जोइज्जइ बुद्धरिक्ख उवियाई।। गिणियाई जम्म रिसिय), कहिय फल नारिनर अंगे॥२६८।। चउरो सिरि तिय वयणं, चड कर वामे हि चड करे दहिणे। पण हियय हग गझे, तिय तिय पय वाम दहिणे हि ॥ २६६। बुध सिरे भू हवई, वयणे मिठुन वाम कर कट्ट। कर दाहिण हियए सुह, गुज्झ रोगं पये भमणं ॥ २७० ॥ __ भावार्थ-बुध चक्र सर्व कार्य में देखना चाहिये, बुध नक्षत्र से जातकके जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारीके अङ्ग विभागमें- ४ मस्तक पर, ३ मुख पर, ४ बांये हाथ पर, ४ जिमर्ने हाथ पर, ५ हृदय पर, १ गुह्य पर, ३. बांये पांव पर और ३ जिमन पांव पर, इस अनुक्रमसे स्थापित कर फल कहना-- बुध

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