Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 97
________________ हिन्दी भाषा-टीका सहितः। स्थान पर, इस अनुक्रमसे स्थापित कर फल कहना-शनि मुख पर हो तो विरोध, जिमना हाथ पर हो तो सुख, पांव पर हो तो परिभ्रमण, बांये हाथ पर हो तो चञ्चल चित्त, हृदयपर हो तो सुख होवे, मस्तक पर हो तो नपमान, नेत्र पर हो तो सुख और गुह्य पर हो तो अशुभ होवे, यह शनिवास चक्र प्राचीन ज्योतिषीयोंने कहा है ॥ २७७ से २८० ॥ शनि दृष्टि तिथि फलइग बिय तिय पुव्वे सनि, चउत्थी पञ्च मिय छट्टि दक्खणयं । सग अड नवमी पच्छिम, उत्तरि दह रुद्द बारिसिया ॥ २८१ ॥ भावार्थ-प्रतिपदा द्वितीया और तृतीया को पूर्व दिशामें, च. तुर्थी पंचमी और षष्ठी को दक्षिण दिशामें, सप्तमी अष्टमी और नवमी को पश्चिम दिशामें, दशमी एकादशी और द्वादशीको उत्तर दिशामें शनिकी दृष्टि है ।। २८१ ॥ • राहुकेतुवास चक्रतमचक्क लव कज्जे, जोइजइ राहरिक्ख ठवियाई। गिणियाई जम्मरिलियं, कहियं फल नारिनर अङ्ग ॥ २८२ ॥ तिय मुहि तिय कर सड पय,हियय पणं तिय सिरम्मि चउ चक्खू। तिय गुज्झ सगवीस, जह राहो भणियं तह केऊ ॥२८३ ॥ राहोइ मुहिय रोग, दक्षिण करएहिं सुहं आगमणं। पाए विदेस भमणं, हियए बहु खाससासं च ॥ २८४ ॥ .. मत्थेइ राइदंडइ, सत्तूखय चक्खू गुज्झि गिहकलहं । तमवासइ चक्क, इय भणिय पुवाइ जोइसिय ।। २८५ ।। भावार्थ-राहु चक्र सर्व कार्यमें देखना चाहिये, राहु नक्षत्र से जातकके जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारीके अङ्गवि. भागमें-३ मुख पर, ३ हाथ पर, ६ पांव पर, ५ हृदय पर, ३ म

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