Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 33
________________ हिन्दी भाषा-टीका समेतः मृगशिर चित्रा और अनुराधा ये चार नक्षत्र को मूदु और मित्र संज्ञक कहते है । विशाखा और कृत्तिका ये दोनों नक्षत्र को मिश्र और साधारण संक्षक कहते है ।। उसका फल-जैसे नक्षत्र के नाम है ऐसे कार्य करना; चरसंशक और लघुसंज्ञक नक्षत्रोंमें प्रयाण विद्यारंभ आदि कार्य करना; उग्र स्थिर और मित्र संज्ञक नक्षत्रोंमें मंगलिक अभिषेक आराम आदि शांतिक कार्य करना (किसोमें उग्र संज्ञक नक्षत्रमें वध बंधन शस्त्र बनाना अग्नि आदिके क्रूर कर्म करना ऐसे कहते हैं)। तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्रों में व्याधि प्रतीकार के कार्य करना । मिश्र संज्ञक नक्षत्रमें साधा. रण कार्य करना ॥ ४३ से ४७ ॥ दिन योगविक्खंभ पीय अक्खय, सोभागं सोभने हि अतिगंड। सोकम्मं घिति सूल, गंडो विद्धो धुवो वाधा ॥ ४८ ॥ हरसण वज्जो सिद्धो, वितिपातं विरिह परिघ सिव सिद्धं । साद्ध सुभो सुकलो, बम्हा इदं च विधिति य ॥४६॥ भावार्थ-विष्कभ,प्रीति, अक्षत (आयुष्यमान्) सोभाग्य,शोभन, अतिगंड, सुकर्मा, धृति, शूल, गंड, वृद्धि, ध्रुव, ध्याघात, हर्षण, का, सिद्धि, व्यतिपात, वरियान, परिघ, शिव, सिद्धि, साध्य शुभ, शुक्ल, ब्रह्मा, ऐन्द्र और वैधृति ये २७ योग है ॥ ४८.४६ योग की दुष्टघडीसम्वे हि धिती हि, सव्वे वितिपात परिध पद्धो हिं।

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