Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ हिन्दी भाषाटीका समेतः । Tags तारा की संख्या अस्सणि तिय भरणी तिय, कित्तिग सड रोहिणी य पण तारा । मिगसिर तिय अदा इंग, पुणव्वसु चउरोइ पुक्ख तियं ॥३॥ असलेसा य सड मघ पण, पुफा दो उफा दोय कर पण य । चित्त इग लाई इग, विसाह अणुराह च चउरो ॥ ४० ॥ जिट्ठ तिय मूल इगदस, चउ चउ पुसा उसाइ तिय अभियं । सवण तियं धणिट्ठा चड, सियमिल सउ पूभ उभदो दो ॥४१॥ रेवय बत्तीसाणं, तारा संख्याइ तिहि निसेयव्वो । सियभित दसमी नेया, रेवय बीया पमाण स्मि ॥ ४२ ॥ भावार्थ- अश्विनी नक्षत्रके तीन तारा, भरणी के तीन, कृष्तिकाके छ, रोहिणीके पांच, मृगशिर के तीन, आर्द्रा के एक, पुनर्वसु के चार, पुष्यके तीन, आश्लेषा के छ, मघाके पांच, पूर्वाफाल्गुनीके दो, उत्तराफाल्गुनी के दो, हस्ताके पांच, चित्राके एक, स्वाति के एक, वि. शाखाके चार, अणुराधा के चार, ज्येष्ठाके तीन, मूलके ग्यारह, पूर्वाषाढा के चार, उत्तराषाढाके चार, अभिजित् के तीन, श्रवणके तीन, धनिष्ठाके चार, शतभिषक् के सो, पूर्वाभाद्रपदा के दो, उत्तरा भाद्रपदा के दो, और रेवतीके बत्तीस तारा है । इनका प्रयोजन यह है कि जिस नक्षत्रके जितने तारा है उसके बराबर की तिथि अशुभ जानना, जैसे- अश्विनी के तीन तारा है तो अश्विनीको तृतीया अशुभ, कृत्तिके छ तारा है तो कृतिका को छह अशुभ, शतभिषक के सो तारा है तो उसको पंदरहसे भाग देनेसे शेष

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98