Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 32
________________ १६ ज्योतिषसारः । १० बचे सो शतभिषा को दशमी अशुभ, रेवती के बत्तीस तारा है तो उसको भी पंदरहसे भागदेने से शेष २ बचे सो रेवती को दूज अशुभ; इस मुआफिक सर्वत्र समज लेना चाहिये || नक्षत्र संज्ञा जिट्ठद्दा ॥ ४४ ॥ चर चल य पंच कहियं, साई पुणव्वसु य तीय सवणाई । कुरा उग्गा पण रिक्ख, मघ भरणी तिन्नि पुव्वा यं ||४३|| थिर धुव य चउ भणियं, रोहिणि एगाइ उत्तरा तिण्णं । दारुण तिन्हं चउरो, मूलं असलेस लहु खिप्प चउ रिक्खं, पुक्खा हत्था य अस्सणि अभीयं । मिहुमित चउ रिसि यं, रेवय मिग चित्त अणुराहा ॥ ४५ ॥ मिस्सो साहारण दुग, विसाह कित्तिय अह फलं कहियं । रिसियाइ जे य कम्मं, नामं सरिसाइ कारेयं ॥ ४६ ॥ गमणं चर लहु कीरइ, संतिं कीरेइ उग्ग थिर मित्तं । वाही छेयी तिन्हं, मिस्सो साहारणं कम्मं ॥ ४७ ॥ भावार्थ-स्वाति पुनर्वसु श्रवण धनिष्ठा और शतभिषा ये पांच नक्षत्रोंको चर और चल संज्ञक कहते है । मघा भरणी और तीनों पूर्वा ये पांच नक्षत्रों को क्रूर और उग्र संज्ञक कहते है। रोहिणी और तीनों उत्तरा ये चार नक्षत्रों को स्थिर और ध्रुव संशक कहते हैं। मूल आश्लेषा ज्येष्ठा और आर्द्रा ये चार नक्षत्रों को दारुण और तीक्ष्ण संज्ञक कहते हैं। पुष्य हस्ता अश्विनी और अभिजित् ये चार नक्षत्रों को लघु और क्षिप्र संज्ञक है। रेवती 1

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