Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 43
________________ हिन्दी भाषा-टोका समेतः। होवे और दोनो नाडी एक साथ चलती हो तो गर्भ धारन करे नहीं ।। ८५॥ स्वर फलरविबल ससिबल तमबल, ताराबल पमुह वसइ अवगणियं। ससि सूर गहिय सरयं, उवियं सोपाय अग्गे हि ॥८६॥ गुरु सुक्क बुद्ध ससि दिण, वामा सुह किण्ह पक्ख सुविसेसं। रवि भूम मंद वासर, दाहिण सुह पक्ख धवले हिं । ८७॥ निसि ससि वासर सूरं, गमणं वजए तूरं । जे जे वहइ पुरं, ते ते पय ठविय रिउ दूरं ।। ८८॥ भावार्थ-शुभकार्य करने जाते समय सूर्य बल चन्द्रबल राहुबल और ताराबल आदिका विचार नहीं करना जो स्वर चलता हो उस तरफका पाँव प्रथम धरकर चले तो कार्य सिद्ध होता है। गुरुवार शुक्रवार बुधवार सोमवार और कृष्णपक्ष इनमें चन्द्रस्वर शुभ है ; रविवार मङ्गलवार शनिवार और शुलपक्ष इनमें सूर्य स्वर शुभ है। रात्रीमें चन्द्रस्वर और दिनमें सूर्य स्वर चले तब शीघही गमन करना अच्छा है, जो जो स्वर चले उस तरफ के पांव प्रथम उठाकर चले तो विजय प्राप्त करता है। दिन. शुद्धि प्रन्थ में भी कहा है कि "पुननाडि दिशापाय, अग्गे किश्चा सया विऊ। पवेस गमणं कुजा, कुणतो साससंगहं ॥१॥ जिस तरफ की नाडी पूर्ण चलती हो उस तरफ का पांव

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