Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 42
________________ २६ ज्योतिषसाः। और स्त्रीसेवन इत्यादिकमें दक्षिण सूर्यनाडी शुभ जानना ॥८॥ स्वर दिशा शूलससिनाडि पुव्व उत्तर-दिसि सूल हवइ गमण वज्जेयं । रविनाडि दिसासूल, पच्छिम दक्षणयं तिजि गमणं ।।८।। __ भावाथ-जब चन्द्रनाडी चलती हो तब पूर्व और उत्तर दिशामें शूल है और जब सूर्य नाडी चलती हो तब पश्चिम और दक्षिण दिशामें शूल है तो उस समय उन दिशाओं में गमन (देशाटन ) नहीं करना ।। ८३ ॥ स्वर द्वारा गर्भज्ञानससि वाम सूर दाहिण, नाडि वहमाण ससि हवइ पुत्ती। रविनाडि पुत्त उभयं, गब्भविणासं गुरु भणियं ।। ८४ ॥ भावार्थ-वाम नासिका चले उसको चन्द्रनाडी और दक्षिण नासिका चले उसको सूर्यनाडी कहते है। जब कोई प्रश्न करे उस वक्त चन्द्रनाडी चलती हो तो पुत्री कहना, :सूर्य नाडी चलती हो तो पुत्र कहना और दोनों नाडी एक साथ चलती हो तो गर्भनाश कहना ॥ ८४ ॥ स्वर ऋतु दानरतिदान इथिएहि, नाडि ससि हवइ सुया उत्पत्ती। सूरो नाडी पुत्तं, गन्भं न धरेइ उभएहिं ॥ ८५ ॥ भावार्थ-स्त्री के ऋतुदान समय चन्द्रनाडी चलती हो तो गर्भ में पुत्री उत्पन्न होवे, सूर्य नाडी चलती होतो गर्भ में पुत्र उत्पन्न

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