Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 96
________________ ज्योतिषसारः I भिगु वयणे धणुनासा, मत्थय लाभं च पाइ-बुहदाहा कर दाहिणे इ हियय, वाम करें गुज्झे जय लाभ || २७६ ।। भावार्थ-शुक्र चक्र सर्व कार्य में देखना चाहिये, शुक्र नक्षत्र से जातक के जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारीके अङ्ग विभागमें-- ३ मुख पर, ५ मस्तक पर, ६ पांव पर, ४ जिमना हाथ पर, २ हृदय पर, ४ बांये हाथ पर और तिन गुहा भाग पर, इस अनुक्रमले स्थापित कर फल कहना शुक्र मुख पर हो तो धननाश करे, मस्तक पर हो तो लाभ, पांव पर हो तो दुःखदायी, जिमना हाथ हृदय बांये हाथ और मस्तक इतने पर हो तो जय लाभ करे। शनिवास चक्र - सनिचक्क सवर कज्जे, जोइज्जइ मन्दरिक्त उवियाई । गिणियाई जम्म रिसिय, कहिय फल नारिनर अते ।। २७७ ॥ इग मुहि चड दक्षिण करि, पाए सड एहि वाम कर चउरों । पण हियए तीयं सिरि, लोयण बीए हि गुज्झ दुगं ॥ २७८ ॥ सनि वयणे इ विरोधं, दक्खिण करि खेम पाइ परिभ्रमणं । चाम करे चल चित्त, हियए हेलाई सुह हवई ॥ २७६ ॥ मत्थेइ भूवमाणं, लोयण सोहग्ग गुज्झि किं असुहं । सनिवासय चक्क, इय भणियं पुव्वाइ जोइसियं ॥ २८० ॥ भावार्थ- शनि चक्र सर्व कार्यमें देखना चाहिये, शनिनक्षत्र से जातक के जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारीके अङ्ग विभागमें- १ मुखपर, ४ जिमना हाथ पर, ६ पांव पर, ४ बांये हाथ पर, ५ हृदय पर, ३ मस्तक पर, २ नेत्र पर और २ गुण ८० -

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