Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 86
________________ ज्योतिषसारः। ~~~mmmmmmmmmmwwwrav.. ताराके नामशान्ता मनोहरा क्रूरा, विजया कुकुलोद्भवा । पद्मिनी रक्षसी वीरा, आनन्दा नवमी स्मृता ॥ २३४ । भावार्थ-पुर्वोक्त क्रमसे गिननेसे ये तारा होती हैं- शान्ता मनोहरा क्रूरा विजया कुकुलोद्भवा पग्रिमी राक्षसी वीरा और आनन्दा ये नाम हैं । इनका नाम सदृश फल जानना ।। २३४ ।। रवि शुभाशुभइग बिय चउ पण सत्तम, अट्ठम नवमी य बारमो सूरो। वाही विदेसदाई, लाहो तिय सड दस इगारं ॥ २३५ ॥ भावार्थ-अपना जन्म राशिसे सूर्य- पहिला दूजा चौथा पांचवां सातवां आठवां नववां और बारहवां हो तो अशुभ है व्याधि करे और देशाटन करावे । तीसरा छठा दशवों और, ग्यारहवां हो तो शुभ है लाभ करे ।। २३५ ॥ - चन्द्रमा शुभाशुभससि जम्म करइ पुटि, बीउ मज्झिमि य तिय निवमाण। कीरइ कलह चउत्थ, पंचम अत्थोइ भंसाय ॥ २३६ ॥ छटो लच्छि अपह, सत्तम निवपूय अढ दुहदाई । नवणि सिद्धि दसम, रुदं जय बार मिश्चाय ॥ २३७ ।। - भावार्थ पहिला चन्द्रमा हो तो पुष्ठी करे, दूसरा मध्यम फल क्षयक, तीसरा नृपमान कारक, चौथा कलहकारी, पाचवां अर्थनाश कारक, महा लक्ष्मी दायक, सातवांराज्यमान, आठवां दुःख

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