Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 78
________________ ज्योतिषसार। वासर सप्पोइ मुही, भद्दा रयणीय हवइ विच्छिया। विधरीया जा भद्दा. सा भद्दा भद्दफलदाई॥ २०॥ भावार्थ-शुक्लपक्ष में भद्रा सर्पिणो संज्ञक हैं और कृष्णपक्ष में वृश्चिकी (विछूनी ) संशक हैं। सर्पिणी का मुख और विछूनी का पूछ वर्जनीय है। पुन:-दिनको भद्रा सर्पिणी मुख है और रात्रिको बिछूनी मुख हैं। विपरीत यांने दिन की भद्रा रात्रि को और रात्रि की भद्रा दिन को हो तो शुभ फल दायक है ।। २०८ ॥ __संमुखी भद्रा विचार.... पुष्वे चवदिसि पढर्म, अहमि अगलेय बीय पुहरम्मि। दक्खणि सत्तमि ति पुहर, पुन्निम नेरइय चउ पुहरं ॥ ६॥ अत्यमिणे चउत्थी पण, दसमी सड पुहर वाईकृणाए । उत्तरि सग एगारिसि, तीया ईसाण अट्ठमयं ॥ २१० ॥ भावार्थ--चतुर्दशी के प्रथम प्रहर को पूर्व दिशा में, अष्टमी के दूसरा प्रहर को आग्नेयकोण में, सप्तमी के तीसरा प्रहर को दक्षिणदिशा में, पूर्णिमा के चौथा प्रहर को नैऋतकोण में, चतुर्थी के पांचवां प्रहर को पश्चिमदिशा में, दशमी के छट्ठा प्रहर को वायव्य कोण में, एकादशीके सातवां प्रहर को उत्तरदिशा में और सृतीया के आठवाँ प्रहर को ईशान कोण में भद्रा संमुखी है। ये गमनादि में वर्जनीय हैं ।। २०६ । २१० ॥ पुनःकिसिणि तिया अग्गी हि, सत्तमि नेरइय दसमि वाए हि । इसाणे चवदिसियं, भहा हवई कणमुहं ॥२१॥

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