Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 92
________________ ज्योतिषसारः। मङ्गल वक्री हो तो अनावृष्टि, बुध वक्री हो तो रस भयकारी,. गुरु वक्री हो तो सुभिक्ष, शुक्र वक्री हो तो मनुष्य सुखकारी और. शनि वक्री हो तो पृथ्वी रुण्ड मुण्ड करे, धन धान्य वस्तुका नाश करे और लोगोंमें रोगका उपद्रव होवे ।। २५४ से २५७ ॥ रविवास चक्ररविचक्क सवइ कज्जे, जोइजइ सूररिक्ववियायं । गिणियाई जम्मरिसियं, कहियं फल नारिनरअंगे ।। २५८ ॥ तिय सिरि तियमुहि खंध दु, बाहू दो हत्थ दोइ पण हियय नाही गुज्मो इग इग, जानू दो पाय सडयायं ॥ २५६ ।। रवि मत्थएइ रज्जं, वयणे रस मिट्ट कन्धि निवमाणं । थान भट्ठो बाहू, चोरभयं हत्थि. लच्छि हियं ॥ २६० ॥ नहि सुह गुज्मि असुह, जाणूं दिसि गमण अप्प आउ पए। रवि वासइ चकं, ईय भणियं पुवाइ जोइसिय ॥ २६१ ॥ भावार्थ-रविचक सर्व कार्यमें देखना चाहिये, सूर्य नक्षत्र से जातक के जन्म नक्षत्र पर्यन्त गिनना और नर नारी के अङ्गविभागमें--- ३ मस्तक पर, ३ मुख पर, २ स्कन्ध पर, २ हाथ पर ५ हृदय पर, १ नाभि पर, १ गुह्य स्थान पर, २ जानु पर, और ६ पांव पर इस मुजब अनुक्रमसे रखकर फल कहना, यथा--- मस्तक पर रवि हो तो राज्य प्राप्ति, मुख पर हो तो मिष्ठ भोजन की प्राप्ति, स्कन्ध पर हो तो नृपमान हो, शाहु पर हो तो स्थान भ्रष्ट, हाथ पर होतो चोर भय, हृदय पर हो तो लक्ष्मी प्राप्ति, नाभि पर हो तो सुख मिले, गुह्य पर हो तो अशुभ हो, जानु पर

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