Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ ................................. ..... हिन्दी भाषा-टीका समेतः। २६ आसाढे पच्छिमयं, सावण भहव नेरई कूणे। दक्खण दिसे हि अस्सणि, कत्तिग मिगसिर हि अग्गी हिं॥३॥ दिसि मभि घडी अढीय, विदिसे पंचेव घडिय वसिएहिं । मासो फिरइ सिहार, सिट्ठोपरि भमइ घडियाइ ॥१४॥ गमणे य जुद्ध जए, पुरीपवेसे वणिज्ज आरंभे। सिवचक पुट्ठि मुठे, धरि भंजेइ पंचसयं (!)॥ १५॥ भावार्थ-पौष मासको पूर्व दिशामें शिवका वास है, माघ फाल्गुन मासको ईसान कोणमें, चैत्र मासको उत्तर दिशामें, वैशाख जेष्ठ मासको वायव्य कोणमें, आषाढ मासको पश्चिम दिशामें, श्रावण भाद्रपद मासको नैऋत कोणमें, आश्विन मासको दक्षिण दिशामें और कार्तिक मार्गशीर्ष मासको अग्नि कोणमें शिवका वास रहता है, दिशामें अढाई घडी और विदिशा ( कोण ) में पांच घडी तक प्रत्येक दिन शिवका वास होता है । यह देशाटन करना, युद्ध करना, जूगार (धुत) खेलना, नगर प्रवेश करना और व्यापार का आरंभ करना इत्यादिक में शिव वास पूठे या दक्षिण तरफ हो तो लाभ दायक है। अन्य ग्रन्थों में भी कहा है कि-यह शिव शुभ होनेसे स्वर शकुन भद्रा प्रहबले दिग्दोष और योगिनी आदि सब शुभ होते है ॥ १२ से १५ ॥ तत्काल जोगिनी स्थापनादिण दिसि धुरि चउ घडिया, पुरओ पुवुन दिसि हि अणुकमसो। सकाल जोगिनी सा, वज्जेयख्या पयत्तेणं ॥ ६ ॥ चउरो य दिसा विदिसं, जोगिणी वसिपहिं सोडसा तिहियं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98