Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 18
________________ ज्योतिषसारः । कुलकं अवकुलकं अधपुहर कालवेल, कक्कड यमघंटा यं, उपाय मिच काण कंटकं जोगं । सिद्धं ॥ ४ ॥ मसम दंडायं । जिमदाढं ॥ ५ ॥ खंजो यमल संवत्तः सूलं सत्तू य कालमुही वजमुसलं, भद्दा कुभोइ चरजोग कालपास, छीया विजया य गमन तारबलं / गह सिसिवत्था गुणसट्टि, भणियं बोले हि अणुक्कम सो ||६|| भावार्थ - तिथि १, वार २, नक्षत्र ३, योग ४, होडाचक्र ५, राशि ६, दिनशुद्धि ७, वाहन ८, हंस ६, वत्स १०, शिवचक्र ११, योगिणी १२, राहु १३, भृगु १४, कीलक १५, परीघ १६, पंचक १७, शूल १८, रविचार १६, स्थिर योग २०, सर्वाक योग २१, रवियोग २२, राजयोग २३, कुमारयोग २४, ज्वालामुखीयोग २५, शुभयोग २६, अशुभयोग २७, अमृतादियोग २८, अर्द्धपहर २६, कालवेला ३०, कुलिक ३१, उपकुलिक ३२, कंटकयोग ३३, कर्कटयोग ३४, यमघटयोग ३५, उत्पातयोग ३६, मृत्युयोग ३७, काणयोग ३८, सिद्धियोग ३६, खंजयोग ४०, यमलयोग ४१, संवर्त्तकयोग ४२, शूलयोग ४३, शत्रुयोग ४४, भस्मयोग ४५. दंडयोग ४६, कालमुखीयोग ४०, वज्रमूसलयोग ४८, सदाफल ४६, कुंभचक्र ५०, यमदाढचक्र ५१, चरयोग ५२, कालपाश ५३, छौंकफल ५४, विजय मुहूर्त्त ५५, गमनफल ५६, ताराबल, ५७, नवग्रह ५८, चन्द्रावस्था ५६ इत्यादि गुनसठ द्वार अनुक्रम से कहते हैं ।। २-३-४–५–६॥

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