Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 30
________________ ज्योतिषसारः । १४ कहते हैं, यह दिनमें दो वार आती है । मासमें एक वार उत्तराढा के अन्त्यका चौथा पाद और श्रवण के आदि की चार घडी एवं १६ घडी अभिजित् होता है उसमें शुभकार्य करनेसे बहुत फल दायक होता है। अभिजित् की उन्नीस घडीके चार भाग पौनी पांच पांच घडी के होते है । उसका जन्माक्षर नाम-जु जे जो खा, है ॥ सप्तवारे अभिजित् अंगुलछाया यंत्र र चं मं अं २० गु शु १६ १५ १४ १३ १२ श १२ नक्षत्र के नाम अस्सनि भरणी कित्तग, रोहिणि मिग अद्द पुणव्वसं पुक्वं । असलेसा य मघा यं, पुव्वा उत्तरफग्गुणियं ॥ ३६ ॥ हत्थाय चित्त सायं, विवाह अणुराह जिट्ठ मूला यं । पुव्वा उत्तरसाढा, अभीय सवणं धणिट्ठा यं ॥ ३७ ॥ सर्याभिसह पुण्वभद्दपद, उत्तरभद्द रेवई य अडवीसं । निक्खत्ता अह तारा, कहियं जोइस पमाणम्मि ॥ ३८ ॥ भावार्थ- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्ष, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराबाढा, अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा, और रेवती ये नक्षत्र के नाम है । ," "

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