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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ ३- जिन अप्राणिवाचक शब्दों के अन्त में अकार वा आकार रहता है और जिन का
आदिवदी अक्षर त नहीं रहता, वे शब्द प्रायः पुलिंग होते है, जैसे-छाता, लोटा, घोड़ा, कागज, घर, इत्यादि । (दीवार, कलम, स्लेट, पेन्सिल, दील आदि शब्दों को छोड़कर ) । ४- जिन अप्राणिवाचक शब्दों के अन्तमें म, ई, वा त हो वे सब स्त्रीलिंग होते हैं,
जैसे—कलम, चिट्ठी,लकड़ी, दबात, जात, आदि (घी, दही, पानी, खेत, पर्वत, आदि
शब्दोंको छोड़कर)॥ ५- जिन भाववाचक शब्दों के अन्त में आव, त्व, पन, और पा हो, वे सब पुल्लिंग होते
है, जैसे-चढ़ाव, मिलाव, मनुष्यत्व, लड़कपन, बुढ़ापा आदि ॥ ६- जिन भाववाचक शब्दों के अन्त में आई, ता, वट, हट हो, वे सब स्त्रीलिंग होते है,
जैसे- चतुराई, उत्तमता, सजावट, चिकनाहट आदि ॥ ७- समास में अन्तिम शब्द के अनुसार लिंग होता है, जैसे-पाठशाला, पृथ्वीपति, राजकन्या, गोपीनाथ, इत्यादि ॥
वचन-वर्णन ॥ १- वचन व्याकरण में संख्या को कहते हैं, इस के दो भेद हैं-एकवचन और बहुवचन ॥ (१) जिस शब्द से एक पदार्थ का बोध हो उसे एकवचन कहते है, जैसे-लड़का
पढ़ता है, वृक्ष हिलता है, घोड़ा दौड़ता है । (२) जिस शब्द से एक से अधिक पदार्थो का बोध होता है उसे बहुवचन कहते है,
____ जैसे-लड़के पढ़ते है, घोड़े दौड़ते है, इत्यादि ॥ २- कुछ शब्द का कारक में एकवचन में तथा बहुवचन में समान ही रहते हैं, जैसे
घर, जल, वन, वृक्ष, बन्धु, वान्धव, इत्यादि ॥ ३- जहां एकवचन और बहुवचन में शब्दों में भेद नहीं होता वहां शब्दों के आगे गण,
जाति, लोग, जन, आदि शब्दों को जोड़कर बहुवचन बनाया करते हैं, जैसे-ग्रहगण, पण्डित लोग, मूढ जन, इत्यादि ।
वचनोंका सम्बंध नित्य कारकों के साथ है इसलिये कारकों का विषय संक्षेप से दिखाते हैं-हिन्दी में आठ कारक माने जाते हैं-कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन ॥
कारकों का वर्णन ॥ १- कर्ता उसे कहते हैं जो क्रिया को करे, उस का कोई चिन्ह नहीं है, परन्तु सकर्मक
१-कोई लोग सम्वध और सम्बोधन को कारक न मानकर शेषा छः ही कारकों को मानते हैं ।