Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ 'प्रथम अध्याय || १९ - (२) विधिक्रिया उसे कहते हैं जिस से आज्ञा, उपदेश वा प्रेरणा पाई जावे, जैसे—खा, पढ़, खाइये, पढ़िये, खाना चाहिये, इत्यादि ॥ (३) सम्भावनार्थ क्रिया से सम्भव का बोध होता है, जैसे---खाऊं, पहूं, आ जावे, चला जावे, इत्यादि ॥ 1 ५ - प्रथम कह चुके है कि क्रिया सकर्मक और अकर्मक भेद से दो प्रकार की है, उस में से सकर्मक क्रिया के दो भेद और भी हैं - कर्तृप्रधान और कर्मप्रधान || (१) कर्तृप्रधानक्रिया उसे कहते हैं जो कर्ता के आधीन हो, अर्थात् जिसके लिंग, और वचन कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार हों, जैसे—- रामचन्द्र पुस्तक को पढ़ता है, लड़की पाठशाला को जाती है, मोहन बहिन को पढ़ाता है, इत्यादि ॥ (२) कर्मप्रधानक्रिया उसे कहते है कि जो क्रिया कर्म के आधीन हो अर्थात् जिस क्रियाके लिंग और वचन कर्म के लिंग और वचन के समान हों, जैसे-रामचन्द्र से पुस्तक पढ़ी जाती है, मोहन से बहिन पढ़ाई जाती है, फल खाया जाता है, इत्यादि ॥ पुरुष - विवरण | प्रथम वर्णन कर चुके है कि - उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा अन्य पुरुष, ये ३ पुरुष है, इन का भी क्रिया के साथ नित्य सम्बंध रहता है, जैसे- मै खाता हूं, हम पढ़ते हैं, वे जावेंगे, वह गया, तू सोता था, तुम वहां जाओ, मै आऊंगा, इत्यादि, पुरुष के साथ लिंग का नित्य सम्बन्ध है इस लिये यहां लिंग का विवरण भी दिखाते हैं:--- लिंग - विवरण | १- जिस के द्वारा सजीव वा निर्जीव पदार्थ के पुरुषवाचक वा स्त्रीवाचक होने की पहिचान होती है उसे लिंग कहते है, लिंग भाषा में दो प्रकार के माने गये हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिङ्ग ॥ (१) पुल्लिंग - पुरुषबोधक शब्द को कहते हैं, जैसे-मनुष्य, घोड़ा, कागज़, घर, इत्यादि ॥ (२) स्त्रीलिंग - सीबोधक शब्द को कहते हैं, जैसे—स्त्री, कलम, घोड़ी, मेज, कुर्सी, इत्यादि ॥ २- प्राणिवाचक शब्दों का लिंग उन के जोड़े के अनुसार लोकव्यवहार से ही सिद्ध हैं, जैसे पुरुष, स्त्री, घोड़ा, घोड़ी, बैल, गाय, इत्यादि ॥ ---- १- पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने की रीतियों का वर्णन यहा विशेष आवश्यक न जानकर नहीं किया गया है, इस का विषय देखना हो तो दूसरे व्याकरणों को देखो ॥

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