Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पा०) वरवट्टियकडी वरतुरगसुजायसु (पसत्थवरतुरग पा०) गुज्झदेसे आइण्णहउव्व णिरुवलेवे वरवारणतुल्लविक्कमविलसियगई। गयससणसुजायसन्निभोरू समुग्गणिमग्गगूढजाणूएणीकुरुविंदावत्तवट्टाणुवुव्वजंधे संठियसुसिलिट्टगूढगुप्फे सुप्पइद्वियकुम्मचारुचलणे अणुपुव्वसुसंहयं ( यपी पा०)गुलीए उण्णयतणुतंबणिद्धणक्खे रत्तुप्पलपत्तमउअसुकुमालकोमलतले अट्ठसहस्सवरपुरिसलक्खणधरे (नगनगरमगरसागरचकंककमंगलंकियचलणेपा०)विसिद्धरुवे हुयवहनिधूमजलियतडितडियतरुणरविकिरणसरिसतेए अणासवे अममे अकिंचणे छिन्नसोए निरुवलेवे ववगयपेमरागदोसमोहे निगंथस्स पवयणस्स देसए सत्थनायगे पहावए समणगपई समणगविंदपरिअट्ठए चउत्तीसबुद्धवयणातिसेसपत्ते पणतीससच्चवयणातिसेसपत्ते आगासगएणं चक्केणं आगासगएणं छत्तेणं आगासियाहिं चामराहिं आगासफालिआमएणंसपायवीढेणंसीहासणेणंधमझएणंपुरओपकढिज्जमाणेणंचउद्दसहिं सभणसाहस्सीहिं छत्तीसाए अजि आसाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुब्दि चरमाणे गामाणुग्गामां दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए णयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंपंप नगरिं पुण्णभई चेइयं समोसरिउकामे ११० तए णं से पवित्तिवाउए इभीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्भे कयकोउअमंगलपायच्छित्तेसुद्धप्यावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्धांभरणालंकियसरीरे सआओ गिहाओ पडिक्खिभइ त्ता चंपाए णयरीए मझमझेणं जेणेव कोणियस्सरण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइत्ता कयलपरिग्गहियं ॥ औपपातिकमुपांग ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81