Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shes Kailassagarsur Gyanmandir |गवेसह आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा आएसणेसु वा आवसहेसु वा पणियगेहेसुवा पणियसालासु वा जाणगिहेसु जाणसालासु कोडागारेसु सुसाणेसु सुन्नागारेसु परिहिंडमाणे परिधोलेमाणे पा०) २७ तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हद्वतुढे जाव हियए हाए जाव अप्पमहग्धाभरणालंकिअसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइत्ता चंपाणयरि मझंमन्झेणं जेणेव बाहिरिया सब्वेव हेछिल्ला वत्तव्वया जाव णिसीयइ त्ता तस्स पवित्तिवाउअस्स अद्धत्तेरससयसहस्साई पीइदाणं दलयति त्ता सकारेइ सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ २८)तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउअंआमतेइत्ता एवं०-खिय्यामेव भो देवाणुप्पिआ! आभिसेवं हस्थियणं पडिष्पेहि, हयगयरहपवरजोहकलिअंच चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई (जुग्गाई पा०) जाणाई उवट्ठवेह, चंपं णयरि सभितरवाहिरिअंआसित्त (सम्मजिओवलित्तं सिंघाडगतिगचउचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसुपा०) सित्तसित्तसुरइयसम्मट्ठदुरत्यंतरावणवीहियं मंचाइमंचकलिअंणाणाविहरागउच्छियज्झयपडागाइपडागमंडिअंलाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदणजावगंधवट्टिभूअं करेह कारवेह त्ता एअमाणत्तिअंपच्चप्पिणाहि निजाइस्सामि समणं भगवं महावीरं अभिवंदए ।२९। तए णं से बलवाउए कूणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुजावहिए करयलपरिग्गहिअंसिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइत्ता हस्थिवाउअंआमतेइत्ता एवं व-खिय्यामेव भो देवाणुप्पिआ! कूणिअस्सरण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेकं हथियणं ॥ औपपातिकमुपांग ॥ पू. सागरजी म. संशोधित | २८ । For Private and Personal Use Only

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