Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |पडिप्पेहि हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहित्ता एअमाणत्तिपच्चप्पिणाहि, तए णं से हत्थिवाउए बलवाउअस्स एअमटुंसोच्चाआणाएविणएणवयणंपडिसुणेइत्ताछेआयरियउवएसमइविकप्पणाविकप्पेहिंसुणिउणेहिं उजलणेवत्थहत्थपरिवत्थिों सुसज वश्मि असण्णद्धबद्धकवड्यउप्पीलियकच्छवच्छगेवेयबद्धगलवरभूसणविरायंत अहियतेअजुत्तं (सललिअ पा०) वरणपूरविराइअंपलंबउच्चूलमहुअर (विरइयवरणपूरसललियपलंबावचूलचामरोक्कर पा०)कयंध्यारं चित्तपरिच्छेअपच्छयं (सचावसर पा०) पहरणावरणभरिअजुद्धसजं सच्छत्तं सज्झ्यं सघंट सपडागं पंचामेलअपरिमंडिआभिरामं ओसारियजमलजुअलघंट विजुपिणद्धंव कालमेहं उप्पाइयपव्वयंव चंकमंतं (सक्खं पा०) मत्तं गुलगुलंतं (महामेघंव पा०) मणपवणजइण (सिग्ध पा०) वेगं भीमं संगामियाओजं आभिसेकं हथियणं पडिप्पइ त्ता हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेइ त्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ त्ता एअमाणतिरं पच्चप्पिणइ, तए णं से बलवाउए जाणसालिअं सहावेइ त्ता एवं व०-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएकपाडिएक्काई जताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवट्ठवेह ताएअमाणत्तिअंपच्चप्पिणाहि, तए णं से जाणसालिए बलवाउअस्सएअमटुं आणाए विणएणंवयणं पडिसुणेइत्ताजेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ त्ता जाणाई पच्चुवेक्खेइ त्ता जाणाई संपमज्जेइ त्ता जाणाई संवटेइ त्ता जाणाई णीणेइ त्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ त्ता जाणाई समलंकरेइ त्ता जाणाई वरभंडमंडियाई रेति त्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ त्ता वाहणाई पच्चुवेक्खेड़ | औपपातिकमुपांग ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81