Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

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Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिक्खेवेणं पं०, देवे णं महिड्ढीए महजुइए महव्वले महाजसे महासुक्खे महाणुभावे सविलेवणं गंधसमुग्गयं गिण्हइ ता तं अवदालेइ त्ता जाव इणमेवत्तिकटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तीहिं अच्छराणिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरिअट्टित्ताणं हव्वमागच्छेजा से णूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तेहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ?, हंता फुडे, छउमत्थे णं गोयमा ! मणुस्से तेसिं घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं जाव जाणति पासति ?, भगवं णो इप्पट्टे समट्टे, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मणुस्से तेसिं णिज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेण वण्णं जाव जाणइ पासइ, एसुहमा णं ते पोग्गला पं० समणाउसो ! सव्वलोयंपिय णं ते फुसित्ताणं चिट्ठति, कम्हा णं भंते! केवली समोहणंति कम्हा णं भंते! केवली समुग्धायं गच्छंति ? गोयमा ! केवलीणं चत्तारि कम्मंसा अपलिक्खीणा ( अवेइया अनिजिण्णा पा० ) भवंति तं० वेयणिज्जं आउयं णामं गुत्तं, सव्वबहुए से वेयणिजे कम्मे भवइ सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ, विसमं समं करेइ बंधणेहिं ठिईहि य विसमसमकरणयाए बंधणेहिं ठिईहि य एवं खलु केवली समोहणंति एवं खलु केवली समुग्धायं गच्छति, सव्वेवि णं भंते! केवली समुग्धायं गच्छंति?, णो इणट्टे समट्ठे, अकिच्चाणं समुग्धायं, अनंता केवली जिणा। जरामरणविष्पमुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥ ८ ॥ कइसमूए णं भंते! आउज्जीकरणे पं०? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पं०, केवलिसमुग्धाए णं भंते! कइसमइए पं० ?, गोयमा ! अट्ठसमइए पं० तं०-पढमे समए दंड करेइ बिइए समए कवाडं करेइ तईए समए मंथं करेइ चउत्थे समए लोयं पूरेइ पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ छट्टे समए मंथं पडिसाहरइ सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ ॥ औपपातिकमुपांगं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ६१ For Private and Personal Use Only

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