Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay
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आहारमाहारेइ घरसए वसहिं उवेइ से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! जण्णं से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ एवं खलु अभडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहि उवेइ सच्चे णं एसमटे, अहंपिणं गोयमा! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ, से केण्डेणं भंते! एवं वुच्चइ अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ?. गोयमा! अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए छटुंछटेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्डंबाहाओ पगिझिय २ सूराभिमुहस्स आतावणभूमीए आतावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया क्याई तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा, तए णं से अभ्भडे परिव्वायए ताए वीरियलद्धीए वेब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहे कंपिल्लपुरे घरसए जाव वसहिं उवेइ, से तेणतुणंगोयमा! एवं वुच्चइ अभ्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घसए जाव वसहिं उवेइ, पहू णं भंते! अभडे परिव्वायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भूवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?, णो इणद्वे समढे, गोयमा! अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ णवरं असियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी (चियत्तधरतेरपवेसी पा०) तिण वुच्चइ, अभ्भडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव परिग्गहे णवरं सब्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, अभ्मडस्सणं णो कप्पइ अक्खसोतप्यमाणमेत्तंपि जलं स्याहं उत्तरित्तए णण्णस्थ अद्धाणगमणेणं, ॥ औपपातिकमुपांग ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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