Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तं०-पुहुत्तवियक्के सविआरी एगत्तवियक्के अविआरी सुहुमकिरिए अप्पडिवाई समुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी, सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पं० नं० - विवेगे विउस्सग्गे अव्वहे असम्मोहे, सुक्कस्स णं झाणरस चत्तारि आलंबणा पं० तं० खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे, सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पं० नं० - अवायाणुप्पेहा असुभाणुप्पेहा अणंतवत्ति आणुप्पेहा विष्परिणामाणुप्पेहा, से तं झामे, से किं तं विउस्सग्गे ?, २ दुविहे पं० नं० - दव्वविउस्सग्गे य भावविउस्सग्गे अ, से किं तं दव्वविउस्सग्गे ?, २ चउव्विहे पं० तं० - सरीरविउस्सग्गे गणविउस्सग्गे उवहिविउस्सग्गे भत्तपाणविउस्सग्गे, से तं दव्वविउस्सग्गे, से किं तं भावविउस्सग्गे ?, तिविहे पं० तं० - कसायविउस्सग्गे संसारविउस्सग्गे कम्मविउस्सग्गे, से किं तं कसायविउस्सग्गे?, २ चउव्विहे पं० नं० - कोहक सायविउस्सग्गे माण० माया लोह०, से तं कसायविउस्सग्गे, से किं तं संसारविउस्सग्गे?, चडव्विहे पं० नं० - णेरइअसंसार विउस्सग्गे तिरिय० मणु० देव०, से तं संसारविउस्सग्गे, से किं तं कम्मविउस्सग्गे ?, २ अट्ठविहे पं० तं० - णाणावरणिजकम्मविउस्सग्गे दरिसणावर णिज्ज० वेअणीअ० मोहणीय० आऊअ० णाम० गोअक० अंतरायकम्मविउस्सग्गे, से तं कम्मविउस्सग्गे, से तं भावविउस्सग्गे (२० । तेणं कालेणं० समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अणगारा भगवंतो अप्पेगइआ आयारधरा जाव विवागसुअधारा (तत्थ तत्थ तहिं तहिं देसे देसे गच्छागच्छ गुम्मागुम्मिं फड्डाफड्डि पा० ) अप्पेगइआ वायंति अप्पेगइआ पडिपुच्छंति अध्पेगइया परियद्वंति अप्पेगइया अणुप्पेर्हति अप्पेगइआ अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेअणीओ णिव्वेअणीओ चउव्विहाओ कहाओ कहंति अप्पेगइया उड्ढजाणू । औपपातिकमुपांगं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित २१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only

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