Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्ता अगवायामजोग्गवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्ते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाइएहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं बिंहणिज्जेहिं सव्विदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगेहिं अब्भंगिए समाणे तेल्लचम्मंसि पडिपुण्णपाणिपायसुकुमालकोमलत लेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तद्वेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अब्भंगणपरिमद्दणुव्वलणकरणगुणणिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए त्यासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगयखे अपरिस्समे अट्टणसालाउ पडिणिक्खमइ ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ ना मज्जणघरं अणुपविसइ त्ता समुत्त ( समन्त० पा० )जालाउलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिजे व्हाणमंडवंसि णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसणे सुद्धोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुहोदएहिं पुण्णेो कल्लाणगपवरमज्जणविहीए मज्जिए तत्थ को असएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहि अंगे सरससुर हिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमालावण्णगविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कंप्पियहारद्धहारतिसरयपालंबलंबमाणक डिसुत्तसुकयशोभे पिणद्धगेविजे अंगुलिजगल लियगल लियकयाभरणे वरकड गतुडियथंभिअभुए अहियरूवसस्सिरीए (मुद्दिआपिंगलं गुलिए कुंडल पा० ) उज्जो विआणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबलंबमाणपडसुक्यउत्तरिज्जे णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहणिउणोवि अमिसिमिसंतविरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठ आविद्धवीरवलए, किं बहुणा?, कम्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए णरवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं (अब्भपडलपिंगलुज्जलेण अविरलसमसहिय। औपपातिकमुपांगं ॥ ३१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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