Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ अविस्साममंडलगती पत्तेयं णामंकपागडियचिंधमउडा महिड्ढिया जाव पजुवासंति २५ तेणं कालेणं० समणस्स भगवओ महावीरस्स वेमाणिया (सामाणियतायत्तीससहिया सलोगपालअगमहिसिपरिमाणिअअप्परक्खेहिं संपरिवुडा देवसहस्साणुजाया मग्गेहिं प्यएहिं समणुगम्मतसस्सिरीया देवसंघजयसद्दकयालोया तरुणदिवागरकातिरेगप्पहे हिं मणिकणगरयणघडियजालुजलहेमजालपेतपरिगएहिंसपयरवरमुत्तदामलंबंतभूसणेहिंपचलियघंटावलिमहरसहवंसतंतीतलतालगीयवाइयरवेणंहद्वतुट्ठमणसा सेसावियप्पवरविमाणाहिवा० इत्यादिपा०)देवाअंतिअंपाउब्भवित्थासोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदबंभलंतकमहासुक्कसहस्साराणयपाणयारणअच्चुयवई पहिट्ठा देवा जिणदंसणुस्सुगागमणजणियहासा पालकपुष्पकसोमणससिरिवच्छणंदिआवत्तकाभगमपीईगममणोगमविमलसव्वओभणामधिज्जेहिं विमाणेहिं ओइण्णा वंदका जिणिदं भिगमहिसवराहछगलदुरहयगयवइभुअगखग्गिउसभंकविडिभपागडियचिंधमउहापसिढिलवरमउडतिरीडधारी कुंडलउज्जोविआणणामउडदित्तसिरयारत्ताभा परमपम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तमविविणो विविहवत्थगंधमल्लधरा महिड्ढिआ महज्जुतिआ जाव पंजलिउडा पज्जुवासंति २६ तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडगतिगचक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु महया जणसहेइ वा जणवूहेइ वा (जणवाएइ वा जणुल्लावेइ वा पा०) जणबोलेइ वा जणकलकलेइ वा जणुम्मीति वा जणुकलियाइ वा जणसन्निवाएइ वा बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासद एवं पण्णवेइ एवं परूवेई एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे सयंसंबुद्धे पुरिसुत्तमे जाव ॥ औपपातिकमुपांग ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private and Personal Use Only

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