Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संपाविउकामे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहभागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए णयरीए बाहिं पुण्ण भद्दे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरड़, तं महम्फलं खलु भो देवाणुम्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोअस्सवि सवणताए, किमंग पुण अभिगमवंदणणमंसणपडिपुच्छणपजुवासणयाए?, एक्कस्सवि आयरियस्स धम्मिअस्स सुवयणस्स सवणताए ?, किमंग पुण विउलस्स अत्थस्स गहणयाए ?, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सभ्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइअं (विणएणं) पज्जुवासामो, एतं णे पेच्चभवे (इहभवे य पा० ) हियाए सुहाए खमाए निस्सेअसाए आणुगामिअत्ताए भविस्सइत्तिकट्टु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोआरेणं राइण्णा ( इक्खागा नाया कोरव्वा पा० ) खत्तिआ माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छइपुत्ता अण्णे य बहवे राईसर तलवरमाडंबियको डुबि अइब्भसेट्ठिसेणावइसत्थवाहपभितओ अप्पेगइआ वंदणवत्तिअं अप्पेगइआ पूअणवत्तिअं एवं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं अप्पेगइआ अट्ठविणिच्छयहे अस्सुयाई सुणेस्सामो सुयाई निस्संकियाई करिस्सामो अप्पेगइआ अट्ठाई हेऊई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो अम्पेगइआ सव्वओ समंता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिअं पव्वइस्सामो अप्पे पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो अप्पेगइआ जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइआ जी अमे अंतिकटु व्हाया कयबलिकम्मा कयकोऊयमंगलपायच्छित्ता ( पाउच्छोलणधोया पा० ) सिरसाकंठेमालकडा आविद्धमणिसुवण्णा । औपपातिकमुपांगं ॥
२६
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81