Book Title: Agam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा त्याहारा पत्ताहारा पुष्फाहारा बीयाहारा परिसडियकंदमूलतयपत्तपुष्फफलाहारा जलाभिसेअकढिणगायभूया आयावणाहिं पंचम्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंडुसोल्लियं कंठसोल्लियंपिव अप्पाणं करे माणा बहूई वासाई परियायंपाउणंतित्ताकालमासे कालं किच्चाउकोसेणंजोइसिएसुदेवेसुदेवत्ताए उववत्तारोभवंति, पलिओवभवाससयसहस्समब्भहि ठिई,आराहगा?,णोइणद्वे समढे १०,सेजे इमेजावसत्रिवेसेसुपव्वइया समणाभवंति,तं०-कंदप्पिया कुक्कुइया मोहरियागीयरइप्पिया नच्चणसीला ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियायं पाउणंति त्ता तस्स ठाणस्स अणालोइअअप्पडिकंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तर्हि तेसिंगती तहिं तेसिं ठिती सेसं तं चेव णवरं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं ठिती ११, से जे इमे जाव सन्निवेसेसु परिव्वायगा भवंति, तं०-संखा जोई कविला भिउच्चा हंसा परमहंसा बहुउदया कुडिव्व्या कण्हपरिव्वायगा, तत्थ खलु इमे अट्ठ माहणपरिव्वायगा भवंति, तं०-'कण्हे अकरकंडे य, अंबडे य परासरे। कण्हे दीवायणे चेव, देवगुत्ते अणारए ॥६॥ तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तियपरिव्वायया भवंति, तं०-' 'सीलई| ससिहारे(य), णग्गई भग्गईतिओविदेहे रायायाय, रायारामे बलेति ॥७॥ तेणं परिव्वायगा रिउव्वेदजजुब्वेदसामवेयअहव्वणक्य इतिहासपंचमाणं णिग्घंटुच्छट्ठाणं संगोवंगाणंसहस्साणंचउण्हं वेयाणंसारगा पारगाधारगा वारगा सडंगवी सद्वितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे शिरुत्ते जोतिसामयणे अण्णेसु य बंभण्णएसु अ सत्थेसु (परिव्वायएसु य नएसु पा०) सुपरिणिडिया ॥ औपपातिकमुपांग ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81