Book Title: Ratnastok Mnjusha Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal View full book textPage 6
________________ रूपी अरूपी का थोकड़ा श्री भगवती सूत्र शतक 12 उद्देशक 5 के आधार से रूपीअरूपी का थोकड़ा इस प्रकार है-- ___1. चौस्पर्शी रूपी के 30 भेद-अठारह पाप, आठ कर्म, कार्मण शरीर, दो योग (मन, वचन), सूक्ष्म पुद्गलास्तिकाय का स्कंध । ये तीस भेद चौस्पर्शी रूपी के हैं। इनमें पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस, चार स्पर्श-शीत, उष्ण, रूक्ष (लूखा) और स्निग्ध (चौपड़िया) पाये जाते हैं। 2. अष्टस्पर्शी रूपी के 15 भेद-छह द्रव्य लेश्या, चार शरीर (औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस), घनोदधि, घनवाय, तनुवाय, काययोग, बादर पुद्गलास्तिकाय का स्कन्ध (इसमें द्वीप, समुद्र, नरक पृथ्वियाँ, विमान और सिद्धशिलादि सम्मिलित हैं)। ये 15 भेद अष्टस्पर्शी रूपी के हैं। इनमें पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस और आठ स्पर्श पाये जाते हैं। 3. अरूपी के 61 भेद-18 अठारह पाप की विरति (त्याग), 12 उपयोग, 6 भाव लेश्या, 5 द्रव्य (पुद्गलास्तिकाय को छोड़कर) 1. यद्यपि पुद्गलों में दो तीन आदि स्पर्श भी पाये जाते हैं, तथापि वे पुद्गल चतुस्पर्शी जाति के माने गये हैं, इसी प्रकार चार (खुरदरा, भारी, शीत, रूक्ष) पाँच छ: आदि स्पर्श वाले पुद्गल अष्टस्पर्शी जाति के माने गये हैं इसलिए यहाँ पुद्गलों के चौस्पर्शी और अष्टस्पर्शी-ये दो भेद ही किये हैं।Page Navigation
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