Book Title: Padhamvaggo
Author(s): Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
Publisher: Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५८ सिरिउसहनाहचरिए बियसमुग्धाएणं उत्तमपोगलाई आकड्ढिऊण अहोत्तरसहस्सं सुवण्णकलसाणं, अहोत्तरसहस्त रुप्पकलसाणं, अहोत्तरसहस्सं रयणकलसाण, एवं मुवण्णरुप्पकलसाण सुवण्णरयगकलसागं रुपस्यणकलसाणं सुषण्णरूप्परयणकलसागं भोमेयगागं कलसाणं आहोत्तरसहरसं विउबिति ।तह य भिंगार-दप्पण-रयगकरंडग-'सुपट्टग-थाला पतिगा-पुप्फचंगेरियाइ पूओवगरणाई कलसाणमिव सुवण्णाइमयाई पत्तेगं अठुत्तरसहरसं विउविरे। ते अभियोगियदेवाते कलसे घेत्तणं खीसरमुद्दे गच्छंति, तस्स जलं पुंडरीग-उप्पल कोकणयाई च पोम्मविसेसाई, पुक्खरसमुद्दे उदगं पुक्खराइं च, भरहेरवयाईणं मानहाइतित्थेमु जलं मट्टियं च, गंगासिंधुपमुहवरनईणं सलिलाई, खुड्डगहिमवंतपब्वयस्स सिद्भत्थ-पुप्फ-वरगंबे सम्बोसहीओ य पउमदहस्स जलं विमलाइं च सुगंधाई पंकयाई गिण्हेइरे, एवं सव्ववासहरवेयइह-वक्खार-पव्वएमु देव -उत्तरकुरूमुं अंतरनई भदसाल--नंदण-सोमणसपंडगवणेसुय जलाइं पंकयाई गोसीस-चंदण-कुसुमो-सहि-फलाइं च गिण्हंति, तओ ते गंधगारा इव एगत्थ गंधदव्यं जलाइं च मेलिऊण सिग्धं मंदरायलसिहरम्मि समागच्छति । ते विणयपणया ताई गंधदबाई खीरोयाइसलिलपडिपुण्णपुण्णकलसे य अच्चुय-सुराहिवइणो समप्पिति । अह सो अच्चुयदेविंदो अभिसेयसब्वसामगि दठूण जायहरिसो आसणाओ उहित्ता दसहि सामाणियसहस्से हि, चत्तालीसाए आयरक्खदेवसहस्सेहिं, तेत्तीसाए तायत्तीसेहिं, तीहिं परिसाहिं, चउहि लोगपालेहि, सत्तहिं महाणीएहि, सत्तहिं अणियवईहि सबओ संपरिबुडो तेहिं विमलतित्थुप्पण्णखीर-नीरपरिपुण्णेहिं विमलकमलपिहाणेहिं गोसीसचंदणपमुहपहाणवत्थुजुत्तेहिं सव्वोसहिरससहिएहिं बहुसहस्ससंखेहिं महप्पमाणेहिं विउब्बिएहिं साभाविरहिं च कलसेहि परमेण पमोएण भगवओ भुवणिक्कवंधवस्स पढमतित्थयरस्स जम्मालिसेगमहूसवं काउं समुवडिओ। तत्तो असीमभत्तिभरो कय उत्तरासंगो अच्चुयदेविदो विकसियपारिजायाइपुप्फंजलि गिण्हेइ, गिण्हिऊण सुगंधिणा बहुलधूवधूमेण तं कुसुमंजलिं वासिऊण तिलोहनाहस्स पुरओ मोएइ । अह अच्चुयदेविंदो सामाणियदेवेहि सह अठुत्तरसहस्सं कलसे घेत्तण नियमत्थयमिव ते मणयं नमावितो तिहुवणनिक्कारणबंधवस्स पढमतित्थयरस्स जम्माभिसेयं कुणई, तथा समकालं सयलकलसेहिंतो सारयससिमऊहजालं पिव गयणसुरसरियाजलपडलं व तुसारहारधवलं खीरोयहिजलं जिणोवरि निवडियं, एवं च पवट्टमाणे जिणाभिसेए सुरेहिं चउब्धिहआउज्जाइं ताडिज्जति । जहा सिरिमहावीरचरिए-- १ 'सुप्रतिष्ठक०-पात्रविशेषः । २ पात्रिका । ३ सिद्धार्थ० - सर्षपः । For Private And Personal

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