Book Title: Padhamvaggo
Author(s): Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
Publisher: Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
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१६४
सिरिजसहनाहचरिए
जायंति, जलहिणो खुब्भंति, कूराई पि सत्ताई सन्वओ गुहासु पविसिरे, महोरगा aara a fasty निलिज्जंति, पाहाणखंडीभवंतसिहरा गिरिणो कंपेइरे, कुम्मओवि संकुयंत - पायकण्ठं वीहेइ, गयणं धंसेइव्त्र, पुढवी विद्दय इव जाय | अह रायद्वारपालेणेव रण- तुरिय- नारण पेरिआ उभयसु सेण्णेसु सेणिगा जुद्धहं सज्जेइरे । केवि र साहू ससंतदेहत्तो तुतीओ कवय-नालिगाओ भुज्जो भुज्जो नवनवाओ ताओ समारएइरे, के वि नेहेण सयं चिय तुरंगमे संनाहिति, 'सुहडा हि वाहणे अहिगं रक्खं कुणे रे' । के वि आसे संनाहिऊण परिक्खिर आरोहिऊण वाहिंति, 'दुसिक्खिओ जडो अ आसो आसारोहम्मि सत्तुव्व आयरेइ' । संनाहगाहणम्मि समाणे तुरङ्गमे केवि देवे इव अच्चेहरे, जुद्धम्मि हेसा हि जयसूइणी सिया । के वि सन्नाह - रहियाssसे लडूण अप्पणी - सन्नाहे चहेरे, 'समरेसुं बाहुपरकमवंताणं म हि पुरिसव्वयं' | मुद्दे मच्छो विव घोररणम्मि खलणारहिओ संचरंतो तुमं aunt कोसलं दंसिज्जाहि त्ति के वि सारहि पसासिंति । पहिगा पोहेएहिं पिव के विचिरं समरं पासमाणा नियरहे समंतओ सत्थेहिं पूरिति । के विचारणे इव दूराओ अप्पजाणवणटुं उत्तभियनियचिन्हे झयर्थभे दियरे विरे । के वि सुसिलिट्ठ - जुग रेडिर रहे परसेण्ण - जलनिहि जलकं मणिनिहे तुरंगमे जुजेइरे । faraati aoraई कवयाई अप्पिंति, 'आससहिया वि रहा सारहिं विणा निष्फला हि' । के विनियँबाहाओ इव उद्दाम - लोह - इ-वलय- सेणि-सम्पक्ककक्कसे यदन्ते पूयंति । केइ समागच्छंतीए जयसिरीए वासराई पिव पडागामालारेहिओ ओ हत्थी आरोविंति कत्थूरीहिं पित्र निम्गच्छंत-गंड-गयमएहिं सउणं ति वयंता केवि तिल कुणंति । के वि अण्ण-गय-मयगंधवासियं पवणं पि असहिरे मन्त्र दुद्धरे गए आरोहेइरे । सव्वे वि हत्थारोहा सध्वेहिं सिन्धुरेहिं समरमहूसव- सिंगार - कंचुए इव सुवण्णम इयेकंकडे गहाविंति तह य डग्गे उष्णालनील-व -कमल- लीलाए लोहमुग्गरे गाहिंति । तह हत्यिवगा जमस्स आहरियदन्ते वि किण्ड - लोह - मइय- तिक्खको सेंए दंतिदंतेसुं "विणिहेरे ।
सत्यपुण्णा वेसरा सडा य अणुगच्छंतु, अण्णह लहुहत्थाणं सत्यं कहं पूरिस्सा | निरंतर संगामकम्मपराणं वीराणं जइ अग्गे धरियाई वम्माई हिस्संति, ओ
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१ विद्राती । २ उच्छ्रवसद् = पुञ्जति तु । ३ संनाहयन्ति = संग्रामने भाटे तर वगेरेथी स रे छे. । ४ हेषा - अभ्वशब्दः । ५ पाथेयैरिव । ६ अवलम्बित० । ७ निजबाहूनिव । ८ शारी:गजपर्याणामाथी पसालु माडी वगेरे ।९ कंकटान् -कवचान् । १० कोशकान् - शस्त्रविशेषान् । ११ विनिदधति ।
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