Book Title: Padhamvaggo
Author(s): Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
Publisher: Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 137
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११६ सिरिउसहनाहचरि काउं को इच्छेज्जा ?, गरुलस्स पक्खेहिं सिरोभूसणं विहेउं को इच्छा ?, नागरायस्स सिरमणिमालं तुं को चिंते 2, भाणुणो तुरंगमे हरिउं को वा वियारेइ ?, पक्खिra area ai मित्र तस्स दप्पं अहं हरिस्सं एवं ववंतो मागहाहिवो वेगेण उट्ठेइ, famra rai fha सो कोसाओ खग्गदंडं करिसेइ, करिसिऊण गयणंमि धूमकेउन्भमप्पयं तं कंपावेइ । तक्खणंमि सागरवेलेव दुब्बारो अस्स सयलोऽवि परिवारो जुगवं सकोवाडंबरं उट्ठेइ । तया केई खग्गेहिं आगासं किण्ह - विज्जुमइयमिव कुणेइरे, केवि निम्मल - वसुनंदहिं अणेगमयंकमइयं गयणं कुणंति, केई अंतलिक्खमि कयंतदंतसेणी निम्मिए इव अच्चंतनिसिए कुंते उल्लालंति, केई वन्दिजीहासरिसपरसुणो भभाति, केवि राहुसरिसभयंकरपज्जतभागे मोगरे गिडेहरे, अण्णे बहर- "कोडिपडसूलसत्थाई करंमि धरिति, अवरे जम-दंड- चंडे दंडे उक्खिवंते, केवि वेरिविष्फोडण - कारणं करप्फोडणं कुणेइरे, केइ उज्जियं मेहनायं व सीहनायं विहे रे, केवि हण हणत्ति, केइ गिण्ह गिण्ड त्ति, केइ य चिसु चिट्ठसु, केयण जाहि जाहि ति वति । इअ जाव तस्स परिवारो 'चित्त - संरंभचेट्टो होत्था ताव अमचो तं बाणं सम्मं निरिक्खेइ, सो तत्थ सरंमि दिव्वमंतक्खराणी व महासाराई उदाराई अक्खराई अवलोएइ, जहा रज्जेण जइ "भे कज्जं, जीवियव्वेण वा जइ । कुणेह णो तओ सेवं, नियसव्वस्स दाणओ ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इअ सुरासुरनरिदसमचिय - सिरिङसहसामिणो नंदणो अयं भरकट्टी तुम्हाणं पच्चक्खं समादिसेइ । एवं मंती अक्खराई ददट्ठूण ओहिणाणेण य तं नच्चा सामिणो वागं दसिंतो उच्चएणं एवं बवेइ-भो भो सव्वे रायलोगा ! अवियारियकज्जकारीणं अत्थबुद्धीए य सामिणो अणत्थदाईणं भत्तमाणीणं तुम्हाणं विरत्थु, इह भरहखेत्तंमि पढमतित्थयरुसहसामिणो हि इमो भरहो पढमचकवही अत्थि, स एसो दंड मग्गेइ, इंदुब्ब चंडसासणो य सो तुम्हाणं नियं सासणं धरात्रि इच्छइ, कयाई समुद्दो सोसिज्जेज्जा, मेरुगिरी व उद्धरिज्जेज्जा, कर्यतो विनिहणिज्जेज्जा, दंभोली विदली - एज्जा, वडवानलो वि विज्झाविज्जेज्जा तह वि कहंचण महीयलंमि चट्टी न जिणिज्जइ । तओ विउसवर ! देव ! मंदबुद्धी इमो लोगो वारिज्जउ, दंडो पउणीकीरउ, चक्क १ उत्तमखङ्गविशेषैः । २ उन्नमयन्ति । ३ कोटि:- अग्रभागः । ४ चित्र संरम्भचेष्टः । ५ युष्माकम् । ६ नः - अस्माकम् । ७ अर्थ बुद्धया हितबुद्धया । For Private And Personal

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