Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ प्रथम अध्याय ॥ १७ विशेषण का विशेष वर्णन ॥ विशेषण के मुख्यतया दो भेद हैं-गुणवाचक और संख्यावाचक ॥ १- गुणवाचक विशेषण उसे कहते है-जो संज्ञा का गुण प्रकट करे, जैसे-काला, नीला, ऊंचा, नीचा, लम्बा, आज्ञाकारी, अच्छा, इत्यादि । २- संख्यावाचक विशेषण उसे कहते हैं-जो संज्ञा की संख्या वतावे, इस के चार भेद हैं-शुद्धसंख्या, क्रमसंख्या, आवृत्तिसंख्या, और संख्यांश ॥ (१) शुद्धसंख्या उसे कहते है जो पूर्ण संख्या को बतावे, जैसे एक, दो, चार ॥ (२) क्रमसंख्या उसे कहते है जो संज्ञा का क्रम बतलावे, जैसे–पहिला, दूसरा, तीसरा, चौथा, इत्यादि ॥ (३) आवृत्तिसंख्या उसे कहते हैं जो संख्या का गुणापन बतलावे, जैसे-दुगुना, चौगुना, इत्यादि ॥ (४) संख्यांश उसे कहते है जो संख्या का भाग वतावे, जैसे पंचमांश, आधा, तिहाई, चतुर्थीश, इत्यादि । क्रिया का विशेष वर्णन ॥ क्रिया उसे कहते है जिस का मुख्य अर्थ करना है, अर्थात् जिस का करना, होना, सहना, इत्यादि अर्थ पाया जावे, इस के दो भेद है-सकर्मक और अकर्मक ॥ (१) सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं-जो कर्म के साथ रहती है, अर्थात् निस में क्रिया का व्यापार कर्ता में और फल कर्म में पाया जावे, जैसे-बालक रोटी को खाता है, मै पुस्तक को पढ़ता हूं, इत्यादि ॥ (२) अकर्मक क्रिया उसे कहते है-जिसमें कर्म नहीं रहता, अर्थात् क्रिया का व्यापार और फल दोनों एकत्र होकर कर्ता ही में पाये जावें, जैसे लड़का सोता है, मैं जागता हूं, इत्यादि। स्मरण रखना चाहिये कि-क्रिया का काल, पुरुष और वचन के साथ नित्य सम्बंध रहता है, इस लिये इन तीनों का संक्षेप से वर्णन किया जाता है: काल-विवरण ॥ क्रिया करने में जो समय लगता है उसे काल कहते हैं, इस के मुख्यतया तीन भेद हैंभूत, भविष्यत् और वर्तमान ॥ १- भूतकाल उसे कहते है-जिस की क्रिया समाप्त हो गई हो, इस के छः भेद हैं सामान्यभूत, पूर्णभूत, अपूर्णभूत, आसन्नभूत, सन्दिग्धभूत और हेतुहेतुमद्भूत ।।

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