Book Title: Mahavira Vachanamruta
Author(s): Dhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 10
________________ मङ्गल-भावना अतुलशान्तिकर सकलातिह, परपदाप्तिविची सुनिदेशकम् । जगति वीरमुखाम्बुधिनिःसृतं, पिवत रे मनुजा वचनामृतम् ।। -प० घनगिरि शास्त्री (सीतामऊ) विनोतु धैर्य विविनक्तु वाच, चिनोतु सत्य प्रभनक्तु भीतिम् चिरस्य लोकस्य निरस्य तान्ति ददातु शान्ति भुवि वीरवाणी ।। -म०म० परमेश्वरानन्द शास्त्री (जालंधर) मुदा वीरखाचोऽमृतं सारभूतं, प्रभूतं सुधैर्येण यत्संगृहीतम् । नितान्तंसुकान्तं प्रसारोऽस्य भूयात, जनानां मनोऽस्मिन् चिरं ररमीतु ॥ -डॉ० मढनमित्र मीमांसाचार्य (दिल्ली)

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