Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा हुआ है। प्रश्नोत्तर-स्थापत्य की विशेषताओं का दिग्दर्शन कराते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है : “कल्पनामूलक कथाओं का दो व्यक्तियों की बातचीत के रूप में कहना कुछ अप्रत्यक्ष-सा होता है, और कवि (या कथाकार) का उत्तरदायित्व कम हो जाता है ...यह जो दो व्यक्तियों के बीच बातचीत के रूप में कथा कहने की पद्धति है, वह इस देश की पुरानी प्रथा है। महाभारत में इसी प्रकार पूर्वकथा कहकर श्रोता-वक्ता की योजना की गई है।" ___आचार्य संघदासगणी ने प्रश्नोत्तर की प्रथा का व्यवहार इसलिए किया है कि कथा में असम्भव समझा जाने योग्य विषय पर-प्रत्यक्ष बना रहे और उसकी असम्भाव्यता की मात्रा कम हो जाय। कहना न होगा कि 'वसुदेवहिण्डी' मनोरंजक कथान्तरों या पूर्वकथाओं से आपातत: आकीर्ण है । इस सन्दर्भ में कथोपकथन या मूलकथा के समर्थन के रूप में या प्रश्नोत्तर-शैली में प्रस्तुत निम्नांकित प्रमुख प्रकीर्ण कथाएँ उदाहर्त्तव्य हैं : कथोत्पत्ति : ___१. इन्द्रियविषय में प्रसक्ति के कारण मृत्यु को प्राप्त वानर की कथा (पृ. ६); २. विषयसुख की उपमा के लिए मधुबिन्दु का दृष्टान्त (पृ. ८); ३. गर्भवास के दुःख के सम्बन्ध में ललितांगद की कथा (पृ. ९); ४. एक भव में ही सम्बन्ध की विचित्रता के प्रदर्शन के लिए कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता की कथा (पृ. १०); ५. अर्थविनियोग की विरूपता के सम्बन्ध में गोपदारक का वृत्तान्त (पृ. १३), ६. लोकधर्म की असंगति के सम्बन्ध में महेश्वरदत्त की कथा (पृ. १४); ७. सुख-दुःख की कल्पना में विलुप्त भाण्डवाले वणिक् की कथा (पृ. १५) । धम्मिल्लचरित :
८. वसन्ततिलका गणिका का प्रसंग (पृ. २८); ९. कोंकण ब्राह्मण की कथा (पृ. २९); १०. कृतघ्न कौए की कथा (पृ. ३३) ११. अगडदत्त मुनि की आत्मकथा (पृ. ५४); १४. नागरिकों द्वारा छले गये गाड़ीवान की कथा (पृ. ५७); १५. स्वच्छन्दचारिणी वसुदत्ता की कथा (पृ. ५९); १६. स्वच्छन्दचारी राजा रिपुदमन की कथा (पृ. ६१)। पीठिका :
१७. महिष की कथा (पृ. ८५); १८. गणिकाओं की उत्पत्ति-कथा (पृ. १०३)। प्रतिमुख :
१९. अवधिज्ञानप्राप्त मुनि की आत्मकथा (पृ. १११) । श्यामाविजयालम्भ :
२०. दो इभ्यपुत्रों की कथा (पृ. ११६)। गन्धर्वदत्तालम्भ :
२१. पिप्पलाद और अथर्ववेद की उत्पत्ति की कथा (पृ. १५१) ।
१. हिन्दी-साहित्य का आदिकाल.तृतीय व्याख्यान' पृ.६२