Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन बनाये। शिल्पाचार्य कोक्कास जिस समय सो रहा था, उसी समय काकजंघ के दो पुत्र यन्त्रघोटक पर चढ़ गये। यन्त्रघोटक पर दबाव पड़ने के कारण वह (विमान) आकाश में उड़ गया। ___ सोकर उठने पर कोक्कास को जब कुमारों को लेकर यन्त्रघोटक के उड़ जाने की सूचना मिली, तब उसने कहा कि 'महान् अनर्थ हुआ ! कुमार विनाश को प्राप्त होंगे। उन्हें यान लौटाने की कील के बारे में जानकारी नहीं है।' राजा ने जब यह बात सुनी, तब वह रुष्ट हो उठा और कोक्कास के वध की आज्ञा दी। यह बात राजा के एक बेटे ने कोक्कास से जा कही। , कोक्कास ने ज्यों ही वध की राजाज्ञा सुनी, उसने एक चक्रयन्त्र का निर्माण किया और राजा के शेष कुमारों से कहा : तुम सभी इसपर चढ़ जाओ और जब मैं शंख बजाऊँ, तब सभी मिलकर एक साथ मध्यम कील पर झटका देना, तभी यान (चक्रयन्त्र) आकाश में उड़ेगा। वे सभी कुमार, 'यही करेंगे' कहकर चक्रयन्त्र पर चढ़ गये।
राजपुरुष कोक्कास को वध के लिए पकड़ ले गये। मारे जाने के पूर्व उसने शंख बजा दिया। इधर कुमारों ने शंख की आवाज सुनकर यान की मध्यम कील को एक साथ झटका दे दिया। झटका देते ही सभी कुमार शूल से भिद गये। उधर कोक्कास को मार डाला गया। राजा ने जब कुमारों के बारे में पूछा, तब उसके किंकरों ने कहा कि वे सभी-के-सभी चक्रयन्त्र के शूल चुभ जाने से मर गये। यह सुनते ही राजा काकजंघ स्याह और सुन्न पड़ गया और 'हाय-हाय !' कहकर शोकसन्तप्त हृदय से रोता हआ मर गया (तत्रैव : पृ. ६३-६४)।
इस कथाप्रसंग से यह भी ज्ञात होता है कि यन्त्रनिर्माता कोक्कास अपने युग का ख्यातिलब्ध शिल्पी था। तभी तो राजा काकजंघ ने उसे अपने यहाँ बुलवाकर उसका सम्मान किया था
और इस प्रकार राजा ने एक उच्चतम कलाकर की उपलब्धि से अपने राज्य को गौरवशाली समझा था। 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' (५.२०१-२७१) में भी कोक्कास की भाँति पुक्वस नामक अन्तरराज्यीय ख्यातिप्राप्त यन्त्रशिल्पी का उल्लेख हुआ है। संघदासगणी का कोक्कास बुधस्वामी के पुक्वस का ही प्रतिरूप है।
एक अन्य कथा (मित्रश्री-धनश्रीलम्भ : पृ. १९५) में भी कृत्रिम विमान की चर्चा संघदासगणी ने की है। वसुदेव ने, रात्रि के समय, ऐन्द्रजालिक द्वारा निर्दिष्ट विद्यासिद्धि की विधि के अनुसार ज्यों ही अपना जप पूरा किया, एक दिव्य अलंकृत विमान आकाश से नीचे उतरा। निर्देशानुसार वसुदेव विमान पर जा बैठे। विमान धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा। थोड़ा ऊपर उठने पर वसुदेव ने अनुमान किया, विमान पर्वतशिखर की बराबरी में उड़ रहा है। इसके बाद वह एक दिशा की ओर उड़ चला। फिर, वसुदेव को ऐसा प्रतीत हुआ कि विमान ऊबड़-खाबड़ प्रदेश में स्खलित होता हुआ चल रहा है। फिर, वसुदेव ने कुछ आदमियों के परिश्रम-जनित उच्छ्वास का शब्द सुना। तबतक सुबह हो चुकी थी। उन्होंने देखा कि वह विमान सर्वथा कृत्रिम विमान था, जो किसी की सलाह से किसी पुरुष द्वारा प्रयुक्त था और जिसे रस्सी से खींचकर लाया गया था। वसुदेव उस विमान से नीचे उतरकर चल पड़े।
इस प्रकार की वैज्ञानिक प्रविधि की प्रासंगिता के साथ प्रस्तुत काल्पनिक कथाओं से ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि उस काल के शिल्पी यन्त्रनिर्मित और कृत्रिम दोनों प्रकार के