Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 604
________________ ५८४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बहत्कथा तीत (३८.२०) : अतीत (सं.); बीता हुआ; विगत । विकल्प से 'अ' का लोप होने से 'ती बन गया है। [थ द] थेवं (२५६.२६) : स्तोकं (सं.) थोड़ा; बिन्दुमात्र; अल्पमात्र । पालि में थेव' को 'बिन्दु' कहा गया है। दलिय (१८९.२६) : दलित (सं.); 'दलिय' के विकसित, खण्डित विदारित आदि कई अर्थ हैं। 'देशीनाममाला' (५.५२) के अनुसार 'दलिय' का अर्थ 'निकूणिताक्ष' (टेढ़ी, या ऐंची नजरवाला), उँगली और काष्ठ है। किन्तु संघदासगणी ने दुर्गति या दुःखपूर्ण स्थिति की प्रतीक्षा के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है। मूलपाठ है : 'नरयगमणहेडं तेसि चिंतेंतो उवेक्खति दलियं विमग्गमाणो।' (नरक-गमन के कारण को सोचता और उनकी दुःखपूर्ण स्थिति की प्रतीक्षा करता हुआ।). दसिणा (१५५.२१) : [देशी); सूत या ऊन का पतला मुलायम धागा। दाइय (३८.१२) : दर्शित (सं.), दिखलाया। दुगुणतरागं (५६.११) : द्विगुणत्वराकं (सं.); जिसकी त्वरा (फुरती) द्विगुण (दुगुनी) हो गई हो। दुप्पडतप्पणा (३८.१९) : दुष्षतितर्पणा (सं.); मूलपाठ 'दुप्पडतप्पणा बोही' का तात्पर्य बोधि (ज्ञान) की दुर्लभता से है। 'दुप्पडतप्पणा' का अर्थ दुर्लभ या दुर्गाह्य सम्भव है। दुवग्गा (१०३.३१) : द्विका: (सं.), दोनों। देवपाओगं (१४२.२४) देवप्रायोग्यं (सं.), देवोचित । देवोवयण (१४२.२४) : देवापपतन या देवोत्पतन (सं.); देवता का आकाश से नीचे उतरना। देसिक (१२२.३) : देशिक (सं.); पथिक; मुसाफिर; प्रोषित; प्रवासी। देसूण (२५७.२१) : देशोन या ईषदून (सं.), कुछ कम; कम अंशवाला। नालियागलएहिं (१०१.१०) : नालिकागलकैः (सं.); विशिष्ट नाट्य-विधि । (विशेष विवरण के लिए प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ का ललितकला-प्रकरण द्रष्टव्य ।) निअडु (४२.२६) नि +अड्डु = निःशेष या निश्चित रूप से (नि) बाधक [अड्ड-देशी] । अड्डु = आड़े आनेवाला; बाधा पहुँचानेवाला। निग्गओ मि पेच्छाघर (१८०.१३) : “निर्गतोऽहं प्रेक्षागृहात्' (सं.), मैं प्रेक्षागृह 'नाट्यशाला' से निकला। कथाकार का पंचमी (अपादान) की जगह कर्मकारक का प्रयोग वैचित्र्य द्रष्टव्य।

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