Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा विद्या उसका उसी प्रकार पीछा करने लगी, जिस प्रकार राम के तृणबाण ने जयन्त का पीछा किया था। विद्यामुखी विद्या द्वारा वापस आने को विवश किया गया अशनिघोष कहीं भी शरणस्थल न पाकर भागता रहा। अन्त में जब बलभद्र की शरण में उपस्थित हुआ, तभी विद्यामुखी ने उसे छोड़ा और यह समाचार अमिततेज को दिया (केतुमतीलम्भ : पृ. ३१९) ।
विद्यादेवी रोहिणी : वसुदेव को अनुकूल पत्नी की प्राप्ति के उपाय की सूचना विद्यादेवी से भी उपलब्ध हुआ करती थी। रोहिणी नाम की जिस पत्नी से वसुदेव का विवाह हुआ था, उसकी प्राप्ति के उपाय की सूचना रोहिणी नाम की विद्यादेवी ने ही दी थी। हिण्डन के क्रम में वसुदेव जब कोशल-जनपद में थे, तभी वहाँ किसी अदृष्ट देवी ने उनसे कहा : “पुत्र वसुदेव ! मैं रोहिणी कन्या तुम्हें सौंप रही हूँ, उसे स्वयंवर में देखकर ढोल बजा देना।"
उसी समय रोहिणी के पिता राजा रुधिर की ओर से स्वयंवर की घोषणा प्रसारित हुई। स्वयंवर में जब सभी राजा मंच पर आसीन हुए, तब वसुदेव ढोल बजानेवालों के साथ, ढोल हाथ में लिये, ढोलकियों के निमित्त अलग से बने हुए मंच पर जा बैठे । रोहिणी जब स्वयंवर में पधारी, तब वसुदेव ने ढोल बजा दिया। रोहिणी सभी राजाओं की उपेक्षा करती हुई वसुदेव के पास पहुँची और उनके गले में पुष्पमाला (वरमाला) डाल दी। ___ वसुदेव जब रोहिणी के साथ सुखपूर्वक विहार कर रहे थे, तभी उन्होंने रोहिणी से पूछा : "देवी ! तुमने पूरी क्षत्रिय-सभा की उपेक्षा कर मेरा ही वरण क्यों किया?" तब, वह बोली : "आर्यपुत्र ! मैं 'रोहिणी' नाम की विद्यादेवी की बराबर पूजा करती थी। जिस समय मेरे लिए स्वयंवर आयोजित हुआ, उस समय भी मैंने देवी की आराधना करते हुए अनुकूल वर की प्रार्थना की थी। तभी, देवी ने आदेश दिया : 'तुम दसवें दशाह वसुदेव की पत्नी बनोगी। ढोल बजानेवाले के रूप में उसे तुम पहचानोगी।' इस प्रकार, देवी के आदेश से मैंने आपको पहचान लिया (रोहिणीलम्भ : पृ. ३६६) ।"
सर्वोषधिलब्धि-विद्या : इस विद्या के प्रभाव से शरीर की सभी मल-धातुएँ (कफ आदि) ओषधि का काम करती थीं। तार्थंकर के चिताभस्म को या भस्मावशेष को सर्वव्याधिहर माना गया है। यह विद्या विशेष लब्धि मानी जाती थी। इस विद्या से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती थी। इसी को 'जल्लौषधि-लब्धि' भी कहा गया है । यह एक तरह की आध्यात्मिक शक्ति थी, जिसके प्रभाव से शरीर के मैल से रोग का नाश होता था (प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २८६)।'
अट्ठारहवें प्रियंगुसुन्दरीलम्भ की कथा (पृ. २९५) है कि हस्तिशीर्ष नगर में द्रम्मदत्त (प्रा. दमदत्त) नाम का बनिया था। एक दिन उसने साधु अनन्तजिन के निकट प्रव्रज्या ले ली। तप के प्रभाव से वह सर्वौषधिलब्धि की विद्या से सम्पन्न हो गया। वह श्मशान के निकट व्रतपर्वक रहता था। यमपाश मातंग का पुत्र अतिमुख बराबर बीमार रहता था। एक बार वह द्रम्मदत्त अनगार के चरणों में उपस्थित हुआ। उस साधु की कृपा से वह नीरोग हो गया। पुत्र ने साधु के चमत्कार की बात मातंग से कही। मातंग भी अपने सम्पूर्ण रुग्ण परिवार के साथ उस साधु के पास गया और उनकी ऋद्धि की कृपा से रोगमुक्त होकर श्रावकधर्म और पंचाणुव्रत स्वीकार कर लिया। ___ इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' विद्याओं के चमत्कार की कथाओं से भरी हुई है। ये इन्द्रजालविद्याएँ एक नहीं, हजारों की संख्या में थीं। प्रज्ञप्ति-विद्या के प्रकरण (नीलयशालम्भ : पृ. १६४)