Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा सन्नेज्झनिमित्तं< सानिध्यनिमित्तं (पृ.३) पडुच्च< प्रतीत्य (पृ.५), छसूडुसु< षड्ऋतुषु (पृ.१३) झाणवाघायं< ध्यानव्याघातं (पृ.१६), वोच्छिज्जिहति< व्युच्छेत्स्यति (पृ.२०), बाहंसुपप्पुयच्छी < बाष्पाश्रुप्रप्लुताक्षी (पृ.२८); दिण्णेल्लयं दत्तं (पृ.३०); अज्झोववण्णो< अध्युपपन्न: (पृ.२९); मुहाए< मुधा (मुधैव); देंति< ददाति या ददति (बहुव. पृ.३४), सएज्झयभवणे< स्वाध्याय (प्रातिवेश्मिक)भवने (पृ.३७), पुरिच्छमिल्ले< पौरस्त्ये (पृ.४४), कत्तोच्चया< कुतस्त्याः (पृ.४८); महिलियासु< महिलासु (पृ.४९); गामेल्लओ< ग्रामणी; ग्रामीण: (पृ.५७), इच्छामहल्लकल्लोले < इच्छामहोदधिकल्लोले (पृ.४२), वोच्छडिय< व्युत्सृष्ट (पृ.४४), कत्तो पाविंताओ< कुत: प्राप्येथाः (पृ.७१); चमढिज्जिहिति< मर्दयिष्यते (पृ.९८; पुरित्थिम< पौरस्त्य (पृ.१५९); उत्तर-पुरथिमे< उत्तरपूर्वस्मिन् (पृ.१६६), अदुगुंछिय< अजुगुप्सित (पृ.२०१); दाहिणाए सेढीए< दक्षिणस्यां श्रेण्यां (पृ.२२७), उत्तरायं सेढीयं< उत्तरश्रेण्यां (पृ.२५७), तीयद्धाए< अतीताद्धायां (पृ.२५८, अमाघाओ< अमाघात: (पृ.२६१), रमणिज्जियं< रमणीयकं (पृ.२८३) अवरिल्ले< उपरि (पृ.३२१) विज्झपुरे< विन्ध्यपुरे (पृ.३३१), उवरिमगेविज्जेसु< उपरितनौवेयकेषु (पृ.३३३, उत्तरिल्ल सेढीए< उत्तरश्रेण्यां (पृ.३३४); उत्तरिल्लाए सेढीए< उत्तरस्यां श्रेण्यां (पृ.३३६), तुसारोसद्धा< तुषारोपहता (पृ.३४८) आदि-आदि। इनमें अधिकांश शब्द अर्द्धमागधी जैनागम में भी यथावत् उपलब्ध होते हैं।
१६. अर्द्धमागधी के आगमिक गद्य की भाँति, कथाकार ने भी अपादानसूचक पंचमी में 'हिंतो' विभक्ति का प्रयोग किया है। जैसे : सिबिगाहिंतो (पृ.३१४); चियगाहिंतोपृ.१८५); पाएहितो (पृ.१३८-२८) आदि । पुन: 'वसुदेवहिण्डी' में प्राप्य बारस, तेरस, बावत्तरि, एगूणसत्तरि, पण्णस
आदि संख्यावाची तथा धमधमेंतं (पृ.४५), गुमगुमायंतं (पृ.५४), गुलगुलायंतं (पृ.५५), मिसमिसेमाणी (पृ.२८), फुरफुतं (पृ.३३७), थरहरंतो (पृ.३३०), किलकिलंती (पृ.२८३), घुरघुरेंत, गुलगुलेंत (पृ.४४) आदि नामधातुमूलक अनुरणनात्मक या ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग इस ग्रन्थ की भाषिक प्रवृत्ति को आगमिक प्रमाणित करते हैं।
१७. अर्द्धमागधी में ऐसे शब्दों की संख्या बहुत अधिक है, जिनके रूप महाराष्ट्री से भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, 'वसुदेवहिण्डी' में प्राप्य कतिपय अर्द्धमागधी शब्दों की तालिका उपन्यस्त है : अर्द्धमागधी
महाराष्ट्री आहरणं (पृ.५९)
उआहरणं बंभणो (पृ.२९)
बम्हणो माहणो (पृ.१८४)
बम्हणो कीस (पृ.१२७)
केरिस मेहुण (पृ.२९६)
मेहुणय वट्ट (पृ.२२१) विज्ज (पृ.५३)
वेज्ज (वैद्य)
वट्ठ