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श्रीमद् राजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
[ सम्यग्ज्ञान वर्णन
इस प्रकार द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनोंके मिलकर सात भेद नयके होते हैं। ऊपर क हुए प्रमाण और नयके संयोगको "नयप्रमारणाभ्याम् युक्तिः” इति वचनात् (इस वचनसे) युक्ति कहते हैं । इस प्रकार प्रमाण और नयका संक्षिप्त कथन “प्रमारण नयैरधिगमः " ( पदार्थोंका यथार्थज्ञान प्रमाण नयों से ही होता है) सूत्रपर ध्यान देकर ही किया गया है, और इसका आगे काम भी बहुत पड़ेगा ।
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पृथगाराधनमिष्टं दर्शनसह भाविनोषि बोधस्य ।
लक्षरणभेदेन यतो नानात्वं संभवत्यनयोः ॥ ३२ ॥
श्रन्वयार्थी - [ दर्शनसह भाविनोषि ] सम्यग्दर्शनके साथ उत्पन्न होनेपर भी [बोधस्य ] सम्यग्ज्ञान का [पृथगाराधनम् ] जुदा ही श्राराधन करना [इष्टं] ठीक अर्थात् कल्याणकारी है, [यतः ] क्योंकि [ अनयोः ] इन दोनोंमें अर्थात् सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानमें [लक्षरगमेदेन ] लक्षणभेदसे [नानात्वं ] भिन्नता [ संभवति ] संभव होती है ।
भावार्थ- सम्यग्दर्शनका लक्षण यथार्थं श्रद्धान है और सम्यग्ज्ञानका लक्षण यथार्थ जानना है, इसी कारण सम्यग्ज्ञानको जुदा ही कहना चाहिए ।
सम्यग्ज्ञानं कार्य सम्यक्त्वं कारणं वदन्ति जिनाः । ज्ञानाराधनमिष्टं सम्यक्त्वानन्तरं तस्मात् ।। ३३ ।।
श्रन्वयार्थी - [जनाः ] जिनेन्द्रदेव [ सम्यग्ज्ञानं ] सम्यग्ज्ञानको [कार्य] कार्य और [सम्यक्त्वं ] सम्यक्त्वको [कारणं] कारण [ वदन्ति ] कहते हैं, [तस्मात् ] इस कारण [ सम्यक्त्वानन्तरं ] सम्यक्त्वके बाद ही [ज्ञानाराधनम् ] ज्ञानकी उपासना [इष्टम् ] ठीक है ।
भावार्थ - यद्यपि पहिले मतिज्ञान और श्रुतज्ञान पदार्थको जानते थे, परन्तु सम्यक्त्वके विना उन दोनोंका नाम कुमति और कुश्रुत था । जिस समय सम्यक्त्व हुआ उसी समय मतिज्ञान और श्रुतज्ञान नाम हो गया, सारांश ज्ञान यद्यपि था, परन्तु उनमें सम्यक्त्वपना सम्यग्दर्शनसे ही हुआ । अतएव सम्यक्त्व कारणरूप और सम्यग्ज्ञान कार्यरूप है ।
काररणकार्यविधानं समकालं जायमानयोरपि हि । दीपप्रकाशयोरिय सम्यक्त्वज्ञानयोः सुघटम् ।। ३४ ।।
अन्वयार्थी - [हि ] निश्चयकर [ सम्यक्त्वज्ञानयोः ] सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दोनों के [समकालं ] एककालमें [ जायमानयोः श्रपि ] उत्पन्न होने पर भी [ दीपप्रकाशयोः ] दीप और प्रकाशके [व] समान [कारणकार्यविधानं.] कारण और कार्यकी विधि [सुघटम् ] भले प्रकार घटित होती है ।
भावार्थ - यद्यपि दीपकका जलना और उसका प्रकाश एक ही साथ होता है, और जबतक दीपक जलता रहता है, तबतक ही प्रकाश रहता है, परन्तु दीपकका जलना प्रकाशका कारण है । इसी प्रकार यद्यपि सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान एक ही समय होते हैं, परन्तु सम्यग्दर्शन कारण है और सम्यग्ज्ञान कार्य है |