Book Title: Purusharth Siddhyupay
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 62
________________ श्लोक ६३-७० ] पुरुषार्थसिद्धच पायः । अर्थात् उक्त मांसके भक्षण में भी [ तदाश्रितनिगोतनिर्मथनात् ] उस मांसके प्राश्रित रहनेवाले उसी जातिके निगोद जीवोंके मथनसे [हिंसा ] हिंसा [भवति ] होती है । भावार्थ- जीवके शरीर में जिस जीवका वह मांस है, उसी जाति के अनन्त सूक्ष्म संमूर्छन जीव भी रहते हैं । इसलिये मांसके खानेमें उन सूक्ष्म जीवोंका घात होनेसे हिंसा होती ही है। श्रामास्वपि पक्वास्वपि विपच्यमानासु मांसपेशीषु । सातत्येनोत्पादस्तज्जातीनां निगोतानाम् ॥ ६७ ॥ अन्वयार्थौ – [ श्रामासु ] विना पकी, [ पक्वासु ] पकी हुई, [ अपि ] तथा [ विपच्यमानासु ] पकती हुई [ अपि ] भी [ मांसपेशीषु ] मांसकी डलियोंमें [तज्जातीनां] उसी जातिके [ निगोतानाम् ] सम्मूर्छन जीवोंका [ सातत्येन ] निरन्तर ही [ उत्पादः] उत्पाद होता रहता है । ३७ भावार्थ - मांसकी डलियोंमें सर्व अवस्थानों में उस ही मांसमें नये नये प्रनन्त जीवोंकी उत्पत्ति होती रहती है । ग्रामां वा पक्वां वा खादति यः स्पृशति वा पिशितपेशीम् । स निहन्ति सततनिचितं पिण्डं बहुजीवकोटीनाम् ।। ६८ ।। श्रन्वयार्थी - [ यः ] जो जीव [ श्रामां ] कच्ची [ वा ] अथवा rai ] ग्निमें पकी हुई [ पिशितपेशीम् ] मांसकी डलीको [ खादति ] भक्षण करता है [ वा ] अथवा [ स्पृशति ] छूता है [सः ] वह पुरुष [ सततनिचितं ] निरन्तर एकत्रित किये हुए [ बहुजीवकोटीनाम् ] अनेक जातिके जीवसमूह [ पिण्डं ] पिण्डको [ निहन्ति ] हनता है । मधुशकलमपि प्रायो मधुकर हिंसात्मकं भवति लोके । भजति मधु मूढधीको यः स भवति हिंसकोऽत्यन्तम् ।। ६६ ।। अन्वयार्थी - [ लोके ] इस लोकमें [ मधुशकलमपि ] मधुका कण भी [ प्रायः ] बहुधा [ मधुकर हिंसात्मकं ] मक्खियों की हिंसारूप [ भवति ] होता है, अतएव [ यः ] जो [ मूढधीकः ] मूर्खबुद्धि पुरुष [ भजति ] शहदका भक्षण करता [ सः ] वह [ अत्यन्तम् हिंसकः ] अत्यन्त हिंसा करनेवाला होता है । स्वयमेव विगलितं यो गृह्णीयाद्वा खलेन मधुगोलात् । तत्रापि भवति हिंसा तदाश्रयप्राणिनां घातात् ।। ७० ।। म्याथ -- [ यः ] जो [ छलेन ] कपटसे [ वा ] अथवा [ गोलात् ] छत्त में से [ स्वयमेव विगलितम् ] स्वयमेव टपके हुए [ मधु ] मधु-या शहदको [ गृह्णीयात् ] ग्रहण करता है, [ तत्रापि ] वहाँ भी [ तदाश्रयप्राणिनाम् ] उसके प्राश्रयभूत जन्तुयोंके [ घातात् ] घात होनेसे [ हिंसा ] हिंसा [ भवति ] होतो है ।

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