Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण कथा-वसुदेव का वीणा-वादन
२६ श्यामा के साथ वसुदेव के दिन सुख मे व्यतीत होने लगे । एक दिन श्यामा ने इतना सुन्दर और मधुर वीणावादन किया कि वसुदेव ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा । श्यामा ने वरदान मांगा'मुझसे आपका वियोग कभी न हो।' हँस कर वसुदेव बोले
-यह तो कोई वरदान न हुआ। स्त्री मात्र की इच्छा है यह तो।
-मुझे यही वरदान चाहिए। -ज्यामा ने आग्रहपूर्वक उत्तर दिया।
वात सामान्य थी किन्तु श्यामा के विशेष आग्रह के कारण वसुदेव को उसमे किसी रहस्य का आभास हुआ। वे बोले
-प्रिये । तुम्हारी वात मे कोई रहस्य नजर आता है।
-रहस्य है तो होने दीजिए। आपको वरदान देने में क्या आपत्ति है ?
-आपत्ति की वात तो अलग है । मुझे वह रहस्य बताओ। वसुदेव के आग्रह पर श्यामा कहने लगी
वैतादयगिरि पर किन्नरगीत नाम के नगर मे अचिमाली नाम का राजा राज्य करता था। उसके ज्वलनवेग और अशनिवेग नाम के दो पुत्र हुए। अचिमाली ने ज्वलनवेग को राज्य पद देकर सयम ग्रहण कर लिया। ज्वलनवेग के अचिमाल नाम की स्त्री से एक पुत्र हुआ अगारक, और अशनिवेग को सुप्रभा स्त्री से एक पुत्री हुई श्यामा-यानी मैं । ज्वलनवेग तो मेरे पिता अशनिवेग को सिहासन पर विठा कर स्वर्ग चले गये किन्तु उनका पुत्र अगारक राज्य लोभी था। उसकी इच्छा स्वय राजा बनने की थी। उसने मुख से तो कुछ नही कहा परन्तु विद्या वल से मेरे पिता अशनिवेग को राज्य से बाहर निकाल दिया और स्वय राजा बन बैठा।
. मेरे पिता अष्टापद पर्वत पर गये । वहाँ अगिरस नाम के चारण मुनि से उन्होने पूछा