Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३३
-वाह दीदी । अवसर तो आपने ही बताया था । सम्पूर्ण योजना तुम्हारी ही थी और अब साफ निकल रही हैं ।
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कृष्ण दोनो की वाते सुनकर मुसकरा रहे थे । उन्हे पूर्णरूप से विश्वास हो गया कि प्रद्युम्न ने अपने विद्यावल से सत्यभामा का मनोरथ विफल कर दिया ।
हँस कर कहने लगे
- तुम तीनो ने मिलकर अपना काम बना लिया । जाववती । तुम्हारी इच्छा पूर्ण हुई ।
जाववती ने कहा
- स्वामी । रात को मैने स्वप्न मे एक सिह देखा था । - तुम्हारे सिह जैसा ही पराक्रमी पुत्र होगा । —कृष्ण ने
बताया ।
महाशुक्र देवलोक से च्यवकर कैटभ का जीव जाववती की कुक्षि मे अवतरित हो गया था ।
अनुक्रम से जाबवती और सत्यभामा का गर्भकाल पूरा हुआ । दोनो ने पुत्रो को जन्म दिया । जाववती के पुत्र का नाम रखा गया शाब और सत्यभामा के पुत्र का भीरुकुमार । उसी समय सारथि दारुक को भी एक पुत्र की ओर सुबुद्धि मन्त्री को जयसेन नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई ।
शनै शनै कुमार बढने लगे और युवावस्था आते-आते शाब सभी कलाओ मे निपुण हो गया ।
प्रद्य ुम्न और गाव मे पूर्वजन्म के सम्बन्धो के कारण विशेष प्रेम था । दोनो साथ - साथ ही रहते ।
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उत्तरपुराण मे जाववती के बताया है और सत्यभामा के
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-वसुदेव हिडी, पीठिका — त्रिषष्टि० ८१७
-उत्तरपुराण ७२११७०-- १७५
पुत्र का नाम शभव अथवा जावकुमार पुत्र का नाम सुभानु । ( श्लोक १७४)