Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२ को रुक्मिणी ने नमन किया तो देवपि ने तुरन्त आशीर्वाद दे डालादक्षिण भरतार्द्ध के स्वामी श्रीकृष्ण तुम्हारे पति हो।
रुक्मिणी के हृदय मे उत्सुकता जागी। उसने पूछा 'श्री कृष्ण कौन है ?' तो नारदजी ने कृष्ण के शौर्य, पराक्रम, सुन्दरता तथा विनयशीलता, बुद्धिमत्ता, नीतिकुशलता और धर्मपरायणता का वर्णन कर दिया ।
श्रीकृष्ण के अद्वितीय गुणो को सुनकर रुक्मिणी रीझ गई । उसने मन ही मन निर्णय कर लिया-'इस जन्म मे श्रीकृष्ण ही मेरे पति होगे। ___ नारदजी ने इधर तो रुक्मिणी को कृष्ण मे अनुरक्त किया और उधर रुक्मिणी का चित्रपट लेकर कृष्ण के पास आये। चित्र देखते ही कृष्ण चित्रलिग्वे से रह गए । पूछने लगे
-देवपि | क्या किसी देवी का चित्र बना लाए है ? ---नही कृष्ण | यह तो मानवी है ।
-मानवी और इतनी सुन्दर ? कौन है ? कुछ परिचय तो दीजिए।
-कुडिनपुर के वर्तमान नरेश रुक्मि की वहन रुक्मिणी ---क्या इतना परिचय यथेष्ट है । नारदजी ने रुक्मिणी परिचय दे दिया।
कृष्ण ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी।
तीर निशाने पर लग चुका था । अव नारद क्यो रुके ? उठ कर चलने लगे तो कृष्ण ने मसम्मान विदा कर दिया। ___ रुक्मिणी की सुन्दरता से प्रभावित होकर कृष्ण ने एक दूत भज कर कुडिनपुर नरेश रुक्मि से प्रिय-वचनो मे उसकी बहन की याचना की।
दत की वात सुनकर रुक्मि व्यगपूर्वक हँस पडा । वोला- .
-अहो । यह कृष्ण कैसा हीन-बुद्धि वाला है जो ग्वाला होकर भी मेरी बहन की इच्छा करता है । मै तो दमघोप के पुत्र शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह करूंगा।