Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा-प्रद्युम्न के पूर्वभव
२०३ सत्यमुनि ने उससे कहा
-भद्र | तुम गूंगे नही हो । तुमने बनावटी मौन धारण कर लिया है। अपने मौन का कारण ग्रामवासियो को बताओ।
गंगे खेडुक ने मुनिजी की ओर देखा। वह समझ गया कि इनके समभ रहस्य छिप नही सकता। वन्दना करके उसने अपने मौन का कारण बता दिया । लोगो ने सुना कि जो कुछ मुनिजी ने कहा था वही खेडुक ने बताया । तब मुनिजी ने खेडुक को समझाया -
- कर्मों की लीला अति विचित्र है। एक जन्म का पिता दूसरे जन्म मे पुत्र हो जाता है, कभी भाई। स्त्री कभी वहन बन जाती है, कभी माँ, और कभी पुत्री । पूर्वजन्मो के सम्बन्धो को इस जन्म मे मानना उचित नही है।
मुनिश्री के वचनो को सुनकर गूगे खेडुक को प्रतिबोध हुआ। अनेक लोगो ने श्रामणी दीक्षा ली और वाह्मण-भाइयो का लोक मे अपवाद फैला।
उस समय तो वे लज्जाभिमुख होकर चले आये किन्तु उपहास और लोकापवाद के कारण उनकी कोपाग्नि प्रज्वलित हो गई। रात्रि के अन्धकार मे वे दोनो तलवार लेकर मुनिश्री के प्राण हरण करने पहुचे । उसी समय उद्यान के स्वामी सुमन या ने उन्हे संभित कर दिया।
दूसरे दिन प्रात काल ब्राह्मण-भाइयो को इस दशा मे देखकर लोगो ने उनकी वहुत निन्दा की। उनके माता-पिता रोने लगे। तब यक्ष ने प्रगट होकर कहा
-तुम्हारे पुत्र मुनि को मारना चाहते थे इम कारण मैंने उन्हे स्तंभित कर दिया है।
- अब इन्हे मुक्त कर दो। -माता-पिता ने रोते-रोते विनय की।
-यदि ये दोनो श्रामणी दीक्षा लेना स्वीकार करे तो अभी मुक्त कर दूं। -यक्ष का उत्तर था।