Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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माता का न्याय
-हे सखि | तुम किस कारण दुखी हो ? -~-क्या करोगी, मेरे दु ख को जान कर ? -तुम्हारा कष्ट मिटाने का उपाय । बताओ तो सही क्या दुख
-पति-वियोग से बढकर दुख और क्या हो सकता है ? यह वाते हो रही थी पति-वियुक्ता सोमश्री और प्रभावती मे।
प्रभावती वैताढ्यगिरि पर अवस्थित गध समृद्धनगर के राजा गधारपिगल की पुत्री थी। वह घूमते-घामते सुवर्णाभ नगर आ पहुँची। वहाँ दुख सतप्त सोमश्री दिखाई पड़ी तो उसे सहानुभूति हो आई । उसने उसके साथ सखीपना जोड लिया। प्रभावती ने पूछा
-सखि | कौन है तुम्हारा पति ? मुझे बताओ तो मैं उसे ले आऊँ।
---एक वार इस मानसवेग की बहन वेगवती भी गई थी इसी अभिप्राय से, सो अव तक नहीं लौटी । अव तुम जरूर ले आओगी।
सोमश्री के शब्दो मे छिपे व्यग को प्रभावती समझ गई। पर स्वय पर काबू रख कर वोली
-सभी एक सी नही होती, सोमश्री ।
- हाँ, होती तो नहीं, पर कामदेव को भी लज्जित करने वाले सुन्दर युवक को देखकर कामपीडित तो सभी हो जाती है ।
-वहुत निराश हो गई हो तुम। मुझ पर विश्वास करो । उनका नाम वता दो।
प्रभावती के आग्रह पर सोमश्री ने वसुदेव का नाम बता दिया।