Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२ दुर्योधन भी सोचने लगा। किन्तु मत्यभामा अपने आग्रह पर अटल थी। उसे पूर्ण विश्वास था कि वह तेजस्वी पुत्र की माँ बनेगी। अत. दुर्योधन से बोली
-मेरा पुत्र तुम्हारा जामाता होगा?
-नही । मेरा पुत्र तुम्हारा दामाद बनेगा। -क्मिणी ने बात काटी। ___ दुर्योधन ने देखा कि इनका विवाद इस प्रकार गान्त नहीं होगा। उसने उत्तर दिया
-तुम मे से जिसके भी पुत्र होगा उसी को मैं अपनी पुत्री दे दूंगा। किन्तु स्त्रियो का विवाद इतनी जल्दी गान्त नहीं होता। मत्यभामा को अब भी वेचैनी थी। वह बोली
-मेरे पुत्र का विवाह पहले होगा। रुक्मिणी ही क्यो दवती, उसने भी कह दिया-पहले तो मेरे ही पुत्र का विवाह होगा। -नही होगा। -होगा। -लगाओ शर्त । -हो जाय । मैं कौन सी कम हूँ। सत्यभामा बोली
-हम मे से जिसके पुत्र का भी विवाह पहले होगा तो दूसरी को अपने सिर के केश देने पडेंगे, स्वीकार है ? .
-हाँ । हाँ ।। स्वीकार है। -अच्छी तरह मोच लो। -खूव सोच लिया। -समय पर पलट मत जाना । -वात बदलने वाले कोई और होगे।
और दोनो मे यह शर्त हो गई। साक्षी रूप में कृष्ण, बलराम और दुर्योधन को भी सम्मिलित कर लिया गया।