Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२ तपस्या से कृग शरीर और कहाँ पोष्टिक भोजन से पुष्ट कस-रानी और फिर मदिरा से मतवाली । मुनि निकल न सके। मुनिश्री के मुख से गभीर वाणी निकली
-जिसके निमित्त यह उत्सव हो रहा है और तुम मतवाली वन गई हो उसी का सातवाँ पुत्र तुम्हारे पति का काल होगा।'
श्रमण अतिनुक्तक के ये सीधे-सादे शब्द जीवयशा को कठोर वज्र से लगे । उसका नशा हिरन हो गया । भयभीत होकर उसने महामुनि का मार्ग छोड दिया। निस्पृह सत अपने धीर-गम्भीर कदमो से चले गए और जीवयशा उन्हे टुकुर-टुकुर ताकती रह गई।
मुनि के चाने जाने के बाद जीवयगा जैसे सचेत हुई। अब उसे पति-रक्षा की चिन्ता सताने लगी। तुरन्त पति को एकात मे बुलाकर अतिमुक्तक मुनि की भविष्यवाणी सुना दी। ___क्स के मुख पर चिन्ता की रेखाएँ उभर आई । कुछ देर तक सोचता रहा और उठ कर वसुदेव के पास चला गया ।
१ उत्तर पुराण के अनुसार मुनि अतिमुक्तक ने तीन भविप्यवाणियाँ की--
१ देवकी का पुत्र अवश्य ही तेरे पति को मारेगा । (श्लोक ३७३) २ तेरे पति को ही नही पिता को भी मारेगा । (श्लोक ३७४) ३ देवकी का पुत्र समुद्र पर्यन्त पृथ्वी का पालन करेगा। (श्लोक ३७५) वही इसके आगे इतना उल्लेख और है ---
किसी दूसरे दिन अतिमुक्तक मुनि आहार के लिए देवकी के घर गए । तव देवकी ने पूछा-'हम दोनों दीक्षा ग्रहण करेगे या नही।' इस पर मुनि ने उत्तर दिया 'तुम लोग इस प्रकार वहाने से क्यो पूछते हो? तुम्हारे सात पुत्र होगे, उनमे से छह तो दूसरी जगह पलेंगे और सयम ग्रहण करके मुक्त हो जायेगे । सातवां पुत्र अर्द्धचक्री होकर पृथ्वी का चिरकाल तक पालन करेगा।' (श्लोक ३८०-३८३)